“उत्तराखंड की परंपराओं से सजी दिव्या की शादी | वदयारी परिवार का गौरव”
Автор: 🌟 𝓒𝓱𝓻𝓸𝓷𝓲𝓬𝓵𝓮 𝓡𝓮𝓪𝓭𝓮𝓻 🌟
Загружено: 2025-11-04
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🌺 वदयारी वंश: परंपरा, श्रद्धा और शौर्य की अमर गाथा
उत्तराखंड की पवित्र भूमि, जहाँ हर शिखर भक्ति की गूंज और हर घाटी इतिहास की गवाही देती है, वहीं वादियारगढ़ का नाम सदियों से ललित वदयारी — जिन्हें लैला बुबु के नाम से भी जाना जाता है — के कारण श्रद्धा से लिया जाता है।
कालिका माता के परम भक्त ललित वदयारी, राजा अजयपाल के काल में वादियारगढ़ में विस्थापित हुए और वहीं से इस महान वंश की नई यात्रा प्रारंभ हुई।
वंश की गौरवगाथा — छह पीढ़ियों की परंपरा
इस वंश की वर्तमान पहचान की शुरुआत रूप सिंह वदयारी से मानी जाती है।
उनकी सादगी, विवेक और नेतृत्व ने इस कुल की नींव को दृढ़ बनाया।
उनके पश्चात आए गुलाब सिंह वदयारी, जो गोलू देवता के परम भक्त माने जाते थे।
उनकी भक्ति इतनी गहरी थी कि वे अपने जीवन में हर निर्णय से पहले गोलू देवता का आशीर्वाद लेते थे।
ब्रिटिश काल में वे क्षेत्र के पधान (प्रधान) के रूप में प्रतिष्ठित रहे, और न्यायप्रियता, ईमानदारी तथा धर्मपालन के लिए प्रसिद्ध हुए।
तभी से, परंपरा के रूप में, वदयारी वंश के बड़े भाई को “पधान” कहा जाता है, जो आज भी परिवार की प्रतिष्ठा और जिम्मेदारी का प्रतीक है।
गुलाब सिंह जी के बाद धन सिंह वदयारी ने वंश को और सुदृढ़ किया —
उनके पुत्र पदम सिंह वदयारी और बालम सिंह वदयारी ने परिवार की दो मुख्य शाखाएँ स्थापित कीं।
पदम सिंह वदयारी की संताने — तीन दिशाओं की शाखाएँ
बचे सिंह,
नंदन सिंह,
कुंदन सिंह —
इन तीनों भाइयों ने वंश को अलग-अलग दिशाओं में प्रतिष्ठा दिलाई।
इनसे आज अनेक परिवार जुड़े हैं, जिन्होंने शिक्षा, सेवा और समाज में अपना नाम ऊँचा किया।
बालम सिंह वदयारी की संताने — साधुता और सौम्यता की धारा
साधु सिंह,
मोहन सिंह (मोहन चाचा) —
इन दोनों भाइयों ने परिवार को एकता, सादगी और अपनत्व का आदर्श दिया।
आज, उसी आदर्श की नई कड़ी के रूप में, मोहन चाचा की सुपुत्री और परिवार की सबसे छोटी बहन, दिव्या,
अपने जीवन के नए अध्याय की ओर बढ़ रही हैं।
उनका विवाह न केवल एक उत्सव है, बल्कि वदयारी वंश की सातवीं पीढ़ी की नई शुरुआत भी है।
वर्तमान में वंश का गौरव
यह वंश न केवल इतिहास का वाहक है, बल्कि आज भी समाज में सम्मान, सेवा और संस्कार का उदाहरण बना हुआ है।
“पधान” की परंपरा केवल एक उपाधि नहीं, बल्कि जिम्मेदारी और अनुशासन की भावना का प्रतीक है —
जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी इस वंश की पहचान बनी हुई है।
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🌿 कालिका माता और गोलू देवता की कृपा से
वदयारी वंश यूँ ही प्रेम, एकता और समृद्धि के मार्ग पर अग्रसर रहे।
दिव्या की शादी इस वंश के इतिहास में नई उजली सुबह लेकर आए —
जहाँ भक्ति, परंपरा और प्रेम का दीप सदा जलता रहे। 🌸🙏
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