Didi Maa Sadhvi Ritambhara Ji | Biography | त्याग, तपस्या और मातृत्व की अविरल धारा
Автор: Sadhvi Ritambhara
Загружено: 2025-05-16
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भारत की पावन भूमि जहां आध्यात्म और संस्कृति की गूंज सदियों से सुनाई देती है, वहीं जन्मीं साध्वी ऋतम्भरा जी, जिन्हें हम सभी प्यार से दीदी माँ कहते हैं। उनका जीवन संघर्ष, सेवा और समर्पण की ऐसी कहानी है जो हर दिल को छू जाती है।
साध्वी जी ने मात्र 16 वर्ष की आयु में सांसारिक जीवन को त्याग कर आध्यात्मिक मार्ग को अपनाया। स्वामी परमानंद जी के सान्निध्य में उन्होंने वेदांत और भारतीय संस्कृति का गहन अध्ययन किया। उन्होंने यह तय किया कि वे अपने जीवन को सेवा और समाज जागरण के लिए समर्पित करेंगी।
1980 के दशक में जब राम जन्मभूमि आंदोलन शुरू हुआ, तब साध्वी ऋतम्भरा जी ने देश के सामने एक सशक्त स्वर के रूप में उभरकर लाखों हिंदुओं को जागरूक किया। उनके ओजस्वी भाषणों और जोश से भरे नारों ने पूरे देश में एक नई ऊर्जा का संचार किया। “मंदिर वहीं बनाएंगे” उनका वो संकल्प था जिसने संपूर्ण हिंदू समाज को एकजुट कर दिया।
उनके संघर्ष आसान नहीं थे। शासन द्वारा प्रायोजित विवादों, कानूनी चुनौतियों और जेलों तक का सामना उन्होंने साहस और अडिग मनोबल से किया। अनेक बार उन्हें छुपकर, वेश बदलकर आंदोलन जारी रखना पड़ा, और भले ही कई बार लोग उनसे दूर हुए, पर उनकी आवाज कभी कमजोर नहीं हुई। उनका जीवन किसी वेगवान नदी की तरह था, जो अपने रास्ते की हर बाधा को पार कर आगे बढ़ती रही।
लेकिन साध्वी ऋतम्भरा जी की सेवा की कहानी यहीं खत्म नहीं हुई। उन्होंने मथुरा में वात्सल्य ग्राम की स्थापना की – एक ऐसा आश्रम जहां अनाथ बच्चों, बेसहारा महिलाओं और वृद्धों को न केवल आश्रय मिलता है, बल्कि एक स्नेहिल परिवार की तरह प्यार, शिक्षा, संस्कार और आत्मनिर्भर बनने का साहस भी मिलता है। दीदी माँ मानती हैं कि इस धरती पर कोई भी अनाथ नहीं होना चाहिए। उनके लिए वात्सल्य ग्राम एक परिवार है, जहां हर बच्चा अपनी माँ की ममता पाता है, और हर महिला आत्मनिर्भर बनकर अपने पैरों पर खड़ी होती है।
आज वात्सल्य ग्राम की सफलता उन हजारों बच्चों और महिलाओं की कहानी है जो यहां से निकलकर डॉक्टर, इंजीनियर, वकील और समाज के सफल नागरिक बने हैं। ये सब दीदी माँ की ममता और संस्कार की वजह से संभव हुआ है।
6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद जब पूरे देश ने राम जन्मभूमि आंदोलन को नई ऊर्जा दी, तब साध्वी जी का संघर्ष चरम पर था। और आज 22 जनवरी 2024 को, जब श्रीराम जन्मभूमि मंदिर का भव्य उद्घाटन हुआ, यह केवल एक मंदिर का निर्माण नहीं बल्कि सनातन धर्म की पुनर्स्थापना का प्रतीक है।
दीदी माँ ने राजनीति से दूर रहकर अपनी पूरी ज़िंदगी सेवा, मानवता और धर्म की रक्षा में बिताई है। उनकी वात्सल्य की धारा आज भी अनेकों जरूरतमंदों के जीवन में शांति और उम्मीद की किरण बनकर बह रही है।
यह वीडियो उनके अद्भुत जीवन, त्याग और मातृत्व की अमूल्य कहानी है, जो हमें सिखाती है कि सच्चा धर्म और सेवा वही है जो मन और हृदय से की जाए।
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