The Disease of Talking – बोलने की बीमारी सबसे गहरी है | Osho Inspired Hindi Pravachan
Автор: Dhyan Pravah
Загружено: 2025-11-13
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मनुष्य बोलता बहुत है—इतना कि वह खुद भी नहीं जानता कि क्यों बोल रहा है।
यह दुनिया इसलिए दुखी नहीं है कि लोग बुरे हैं,
यह दुनिया इसलिए दुखी है कि लोग चुप नहीं हैं।
हर आदमी अपने ही शब्दों में फँसा हुआ है।
बोले हुए वाक्य उसके खिलाफ़ खड़े हैं,
बोली हुई प्रतिक्रियाएँ उसके जीवन को नियंत्रित कर रही हैं,
और जुबान एक ऐसी बीमारी बन चुकी है
जिसे मनुष्य बीमारी मानने को भी तैयार नहीं।
यह प्रवचन उसी गहरी समस्या को उजागर करता है—
कि बोलना बस बोलना नहीं,
अहंकार का नशा है।
मन का शोर है।
अवचेतन का डर है।
अपूर्णता का पर्दा है।
और यही बोलने की बीमारी
रिश्ते तोड़ती है,
शांति चुरा लेती है,
ध्यान को नष्ट करती है,
और मनुष्य को उसके भीतर से दूर ले जाती है।
सच तो यह है—
शब्द कभी किसी को नहीं बदलते।
बदलाव मौन से आता है।
सत्य शब्दों में नहीं मिलता—
सत्य उनके बीच के सन्नाटे में उतरता है।
यह प्रवचन याद दिलाता है कि
जो चुप हो गया, वही देख पाया।
जो देख पाया, वही समझ पाया।
और जो समझ पाया—वह मुक्त हो गया।
मुख्य भाव:
“बोलते-बोलते मनुष्य अपने आप से दूर हो जाता है।
और मौन में उतरते ही पहली बार अपने आप से मिलता है।”
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Disclaimer:
This video uses AI-generated voice for creative narration.
It is an artistic and respectful tribute to Osho’s vision,
created to spread understanding and awareness.
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