हर पल — सत्य के संग II SWAMI TRAILOKYANANDA II 09 - 12 - 25
Автор: Truth Unfolds - हिन्दी
Загружено: 2025-12-09
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🔷 Short Description
Hindi
यह प्रवचन सहजता, अस्तित्व और कर्म के सिद्धांत को सरल उदाहरणों – मिट्टी-ईंट, धागा-पर्दा, जल-लहर के माध्यम से समझाता है। इसमें बताया गया है कि हमारा वास्तविक स्वरूप सहज है, और उसी में परमात्मा की प्राप्ति होती है – करने में नहीं, होने में।
English
This discourse explains the principle of existence and action through simple analogies like clay-brick, thread-curtain, and water-wave. It reveals that our true nature is effortless awareness, and realization is found not in doing, but in simply being.
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00:00 – संगीत प्रारंभ
00:12 – समझो, जिसका आधार होता है, वही उसका स्वरूप होता है।
00:17 – जैसे ईंट मिट्टी से बनी है, तो मिट्टी उसका आधार और स्वरूप दोनों है।
00:28 – पर्दा धागे से बना है – धागा ही उसका स्वरूप है।
00:56 – यह बहुत सरल बात है, जटिल नहीं।
01:03 – लकड़ी बिस्तर का आधार है – इसलिए स्वरूप लकड़ी ही रहेगा।
01:17 – जो चीज करने से मिले, उसका आधार 'करना' है।
01:27 – यदि भगवान साधन से मिले, तो साधन करना ही आधार हुआ।
02:02 – जीवन और जगत में कर्म सिद्धांत चलता है।
02:14 – जो अधिक करता है, वही पाता है – ऐसा भ्रम लगता है।
02:45 – हमारा स्वरूप करना नहीं – होना है।
03:10 – जब हम कहते हैं "मैं करता हूँ" – अनुभव करो।
03:41 – भगवान का स्वरूप 'सच्चिदानंद' है – कर्म स्वभाव नहीं बताया।
04:26 – होना ही आधार है – इसलिए परमात्मा होने से मिलता है, करने से नहीं।
04:41 – समझने का प्रयास भी ‘करना’ है।
05:55 – 'समझना' शब्द ज्ञान को मन बना देता है – तभी जीव अनुभव होता है।
06:33 – "मैं लहर नहीं, मैं जल हूँ" यही बोध चाहिए।
07:04 – धागा पर्दे में सहज है – कोई कोशिश नहीं।
07:44 – चेयर को पता नहीं वह चेयर है। नाम-रूप हमारी मान्यता है।
08:31 – लाइट स्वयं नहीं जानती कि वह लाइट है – वह केवल है।
09:14 – भूख भी एहसास है, नाम हमने दिया।
10:03 – आत्मज्ञान इसलिए समझाया जाता है कि हम बुद्धि में जीते हैं।
11:15 – नाम-रूप बदल जाए, अस्तित्व नहीं बदलता।
12:03 – पानी को नहीं पता उसमें लहर है – बस है।
13:39 – नाम बदल जाए तो भी सही अनुभव वही।
15:21 – जगत निर्विकल्प है – सहज स्वभाव।
16:58 – अविरोध में विरोध ही संघर्ष है।
18:15 – सहज नाम-रूप का आधार है।
19:22 – समयातीत अनुभव ही आनंद है।
21:10 – जहां मौन शब्द है – वहीं सत्य है।
23:33 – "मैं हूँ" सहज में प्रकट होता है, प्रयास से नहीं।
25:20 – जल लहर बनता है पर जल ही रहता है।
26:47 – सहजता स्वभाव है इसलिए असहज भी हो पाते हैं।
29:03 – जितना सरल – उतना गहरा।
30:18 – सहज अनुभव में अनुभवकर्ता भी मिट जाता है।
31:34 – सभी अभी इसी क्षण आत्मस्वरूप हैं – बस सहज हो जाओ।
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Spiritual Satsang discourse on effortless awareness
Speaker explaining non-duality with simple metaphors
Indian spiritual talk about being vs doing
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Teaching on natural state of awareness (Sahaj Avastha)
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