पाप - भारत भूषण (Paap - Bharat Bhushan)
Автор: Pramod Shah
Загружено: 2020-04-27
Просмотров: 19719
'मारवाड़ी युवा मंच उत्तर मध्य कोलकाता' द्वारा, ९ अक्टूबर, २००४ को 'एक शाम अदब के नाम' से कविता और शाइरी की दूसरी शाम, 'सेंचुरी प्लाई' के संग, कोलकाता के कला-मंदिर सभागार में, आयोजित की गई थी। इसका सञ्चालन करने का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ था। उस शाम भारत भूषण ' जी ने अपनी अमर रचना 'पाप' सुनाई थी -- 'न जन्म लेता अगर कहीं मैं, धरा बनी ये मसान होती' इस विषय पर इस तरह की कविता, हिंदी या उर्दू में मेरी नज़रों से नहीं गुज़री। पूरी कविता पाप की ज़बानी है,यानी प्रथम पुरुष (First Person) में है।उनकी आवाज़ में प्रस्तुत है --
पाप
-----
--भारत भूषण
न जन्म लेता अगर कहीं मैं, धरा बनी ये मसान होती
न मंदिरों में मृदंग बजते, न मस्जिदों में अज़ान होती
(मसान=श्मशान)
लिए सुमिरनी डरे हुए-से, बुला रहे हैं मुझे पुजेरी
जला रहे हैं पवित्र दीवे, न राह मेरी रहे अंधेरी
हज़ार सिज़्दे करे नमाज़ी, न किन्तु मेरा जलाल घटता
पनाह मेरा यही शिवाला, महान गिरजा सराय मेरी
मुझे मिटा कर न धर्म रहता, न आरती में कपूर जलता
न पर्व पर ये नहान होते, न ये बुतों की दुकान होती
(सुमिरनी=एक छोटी जपमाला, पुजेरी=पूजा करने वाले/पुजारी, सिज़्दे= माथा टेकना, जलाल =तेजपर्व पर नहान=कुम्भ-स्नान/गंगासागर स्नान, बुत=मूर्ति )
मुझे सुलाते रहे मसीहा, मुझे मिटाने रसूल आए
कभी सुनी मोहिनी मुरलिया, कभी अयोध्या बजे बधाए
मुझे दुआ दो, बुला रहा हूँ, हज़ार गौतम,हज़ार गाँधी
बना दिए देवता अनेकों, मुझे मगर तुम न पूज पाए
मुझे रुलाकर न सृष्टि हँसती, न सूर,तुलसी,कबीर आते
न क्रॉस का ये निशान होता, न पाक-पावन कुरान होती
(मसीहा=ईसा मसीह, रसूल=एक पैगम्बर/ईश्वरी दूत)
न वेद मुझसे बचे हुए हैं, न बाइबिल की रही कड़ी है
पुराण,गीता,हदीस काँपे, कभी ज़रा जो नज़र पड़ी है
मुझे मिटाने हुए बहुत-से पता नहीं गुम हुए कहाँ हैं
अजेय मेरा निशान उड़ता, बिना झुकी बुर्ज़ियाँ खड़ी हैं
न चूमता मैं आधार जनम के, सभी अधर फिर नि:शब्द होते
न स्यात ऐसा जहान होता, न स्यात ऐसी ज़बान होती
(हदीस= मुहम्मद पैग़म्बर की कही बातें, बुर्ज़ियाँ=गुम्बदें, स्यात= कदाचित/शायद)
बुरा बतालें मुझे मौलवी, कि दें पुरोहित हज़ार गाली
सभी चितेरे शक्ल बना लें, बहुत भयानक कुरूप काली
मगर यही जब मिलें अकेले, सवाल पूछो यही कहेंगे
'कि पाप ही ज़िंदगी हमारी, वही ईद है,वही दीवाली'
न सींचता मैं अगर जड़ों को, कभी जहाँ में न पुण्य फलता
न रूप का यूँ बखान होता, न प्यास इतनी जवान होती
(चितेरे=चित्रकार)
Доступные форматы для скачивания:
Скачать видео mp4
-
Информация по загрузке: