Katak karam kamavane || Baramaha || Bani Guru Arjun Dev ji ||Sangrand|| Radha Soami Shabad || RSSB||
Автор: Surat Shabad Parkash
Загружено: 2024-10-15
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बानी गुरु अर्जुन देव जी|| बारह महा || Page 135 ||
कतिकि करम कमावणे दोसु न काहू जोगु ॥
परमेसर ते भुलिआं विआपनि सभे रोग ॥
वेमुख होए राम ते लगनि जनम विजोग ॥
खिन महि कउड़े होइ गए जितड़े माइआ भोग ॥
विचु न कोई करि सकै किस थै रोवहि रोज ॥
कीता किछू न होवई लिखिआ धुरि संजोग ॥
वडभागी मेरा प्रभु मिलै तां उतरहि सभि बिओग ॥
नानक कउ प्रभ राखि लेहि मेरे साहिब बंदी मोच ॥
कतिक होवै साधसंगु बिनसहि सभे सोच ॥९॥
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