गोंडवाना के लिंगोगढ़ क़िले का रहस्य, Mystery of Lingogarh Fort of Gondwana - Dr.Suraj Dhurvey
Автор: The Koitoor Times
Загружено: 2021-04-22
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असीरगढ़ (लिंगोगढ़) का किला
पुरखों की निशानी को बचाने को चलें हम
कोइतूरों का इतिहास दिखाने को चलें हम
कब कैसे कहाँ किसने विरासत को मिटाया
ये राज ज़माने को बताने को चलें हम
डॉ. सूर्या बाली ‘सूरज धुर्वे’
सतपुड़ा की सुरम्य वादियों और हरे भरे वनों में गोंडवाना साम्राज्य की अनमोल धरोहर बिखरी पड़ी हुई है। पूरब में बंगाल की खाड़ी से पश्चिम में अरब सागर तक कोइतूर शासकों के सैकड़ों किले, महल, हवेलियाँ और बावड़ियाँ सतपुड़ा पर्वत श्रंखला में आज भी देखी जा सकती हैं। कोइतूरों की ये प्राचीन धरोहरें आज भी अपने प्रख्यात राजे महाराजाओं के वीरता, शौर्य और वैभव की कहानियाँ बयान कर रही है। दुर्भाग्य देखिये जिस कोइतूर समाज का अतीत इतना गौरव शाली और शौर्यपूर्ण रहा हो उसके वंशज आज भी ये नहीं जान पा रहे हैं कि वे कौन हैं और उनका रुतबा क्या था?
कोइतूरों के वंशजों का आज और भविष्य दोनों अंधकार में दिख रहे हैं। आज जब कोइतूर अपनी हीन दीन अवस्था और अपनी नाकामियों को देखता है तो दिकुओं द्वारा कहीं गयी बातें ही उसे सच लगती हैं और वह अपने प्राचीन गौरवशाली इतिहास पर यकीन भी नहीं कर पाता है। बहुत ज्यादा दिनों की बात नहीं मात्र 400-500 वर्षों की उठापटाक में इस गोंडवाना की धरती का मालिक आज भिखारी बना हुआ फिर रहा है और चंद भिकारी आज हमारे ऊपर मालिक बनकर हमें गुलामों की ज़िंदगी जीने पर मजबूर कर रहे हैं।
आज हम आपको असीरगढ़ किले के बारे में बताएँगे और और ये भी बताएंगे की यह कितना प्राचीन और सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और ऐतिहासिक महत्त्व का किला है और इसका नाम असीरगढ़ कैसे पड़ा/?
यह किला मध्य प्रदेश के बेतुल जिले के उत्तरी पूर्वी भाग में घोडाडोंगरी तहसील में सतपुड़ा की ऊंची और दुर्गम पहाड़ियों में स्थित है, इस किले की प्राचीनता का आंकलन मानव सभ्यता के विकास के साथ जुड़ा हुआ है और कोया पुनेमी संस्कृति का राज केंद्र रहा है। यहीं से पूरे गोंडवाना में कोइतूरों का शासन प्रशासन चलता था और नियंत्रित भी किया जाता था।
असीरगढ़ किला मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से दक्षिण पूर्व दिशा में दिशा में लगभग 180 किलोमीटर की दूरी पर बेतुल जिले में स्थित है। भोपाल नागपुर राजमार्ग पर होशंगाबाद और इटारसी से होते हुए 130 किलोमीटर दक्षिण में स्थित भौरा पहुंचना होता है। फिर भौंरा कस्बे से बाएँ मुड़कर पूर्व दिशा में तवा नदी को पार करते हुए असीरगढ़ किले तक पहुंचा जाता है। भौंरा कस्बे से असीरगढ़ की दूरी लगभग 50 किलोमीटर है जहां पर सतालदेही, चोपना और रामपुर होते हुए असीरगढ़ किले के निकट मनकढ़ाना गाँव तक आसानी से पहुंचा जा सकता है। यह प्राचीन किला मनकढ़ाना गाँव से पूर्व में स्थित सतपुड़ा पर्वत शृंखला की डमरू के आकार की पहाड़ी पर स्थित है।
यह किला पंचमढ़ी से लगभग 30 किलोमीटर दक्षिण पश्चिम में स्थित है जहां पर कोई सड़क मार्ग नहीं है। पंचमढ़ी से असीरगढ़ किले की दूरी को पैदल तय किया जा सकता है। इस किले के नीचे की तराई को “हेरन घाटी” कहते हैं जो बोरी वाइल्ड लाइफ सेंचुयरी के अंतर्गत आती है जो पंचमढ़ी बायोस्फीयर रेजर्ब का हिस्सा है। यह वैन विभाग द्वारा संरक्षित क्षेत्र है जहां पर आवागमन की सुविधाएं न के बराबर हैं।
दक्षिण की तरफ यही सारणी या बेतुल से आने वाले लोग बरेठा सारणी मार्ग पर स्थित बगडोना से नादिया घाट, आमठाना और नूतन डंगा होते हुए लगभग 20 किलोमीटर उत्तर की तरफ चलकर असीर गढ़ किले तक पहुँच सकते हैं लेकिन इस रास्ते से कार द्वारा पहुँचने में काफी मुश्किल होती है लेकिन बाइक द्वारा आसानी से जाया जा सकता है।
इस किले के मुख्य आकर्षण निम्नलिखित हैं :-
1. प्राचीन दीवाल
2. रानी की बावड़ी
3. शंभू शेक की प्राचीन गुफा
4. रानी महल का अवशेष
5. रानी पुलेसिया बाई का पेनठाना
6. प्राकृतिक पानी की झिरिया
7. राजा महल
8. बारूदखान
9. कमानी दरवाजा
10. अली दरवाजा
11. लिंगोगाढ़ की कुलदेवी चंडीदाई का ठाना
12. लिंगो का झरना
-डॉ सूरज धुर्वे
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