कैकेयी द्वारा मृत्यु दण्ड की माँग। भरत द्वारा राम से राज्य सम्भालने की याचना | Ramayan Katha
Автор: Bharat Ki Amar Kahaniyan
Загружено: 2025-11-24
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"राम और भरत का मिलाप बहुत ही भावुक वातावरण में होता है। राम द्वारा पिता की कुशलता के बारे में पूछे जाने पर भरत रुँधें गले से उनके निधन का समाचार देते हैं। राम लक्ष्मण गले लगकर रोते हैं। तभी गुरु वशिष्ठ और तीनों रानियाँ कौशल्या, कैकेयी और सुमित्रा वहाँ पहुँचती हैं। राम तो मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। वे कौशल्या की बजाय पहले माता कैकेयी के चरण स्पर्श करते हैं। कैकेयी को अपराध बोध है लेकिन राम के मन में कोई मलाल नहीं। वे इसे नियति का खेल मानते हैं। तत्पश्चात राम माता सुमित्रा और कौशल्या से मिलते हैं। महर्षि वशिष्ठ के आदेश पर राम और लक्ष्मण से अपने दिवंगत पिता को तिल और मन्दाकिनी के पवित्र जल से तर्पण करते हैं। रात्रि में राम गुरु वशिष्ठ के और सीता बारी बारी तीनों माताओं के चरण दबा कर सेवा धर्म निर्वाह करती हैं। ग्लानि से भरी कैकेयी सीता से कहती है कि वह राम से कहकर उसे मृत्युदण्ड दिलाये जिससे वो अपनी लज्जित जीवन से छुटकारा पा सकें। माता सुमित्रा सीता से जानती हैं कि लक्ष्मण उनकी किस प्रकार सेवा करते हैं। अगले दिन महर्षि वशिष्ठ सभा आहूत करते हैं। राम सभा में गुरु वशिष्ठ की आज्ञा का पालन करने की प्रतिज्ञा करते हैं। सभी के चेहरों पर आशा की किरण जगमगा जाती है लेकिन अगले ही पल राम यह भी कह देते हैं कि गुरुदेव उन्हें नीति और धर्म सम्मत आज्ञा ही दें। गुरु वशिष्ठ भी ज्ञानी हैं। वे राम की कूटनीति का उत्तर देते हुए कहते हैं कि याचक नीति अनीति नहीं सोचता है। उसे केवल अपनी याचना पूरी होने से सरोकार होता है। वशिष्ठ कहते हैं कि भरत के प्रेम के आगे धर्म और नीति कोई स्थान नहीं रखती है और फिर वे भरत से बड़े भाई राम के समक्ष अपने हृदय की बात रखने को कहते हैं। भरत राम से कुल का ज्येष्ठ पुत्र होने के नाते राज सिंहासन स्वीकार करने की याचना करते हैं। कैकेयी भी राम से कहती हैं कि वे अपने माँगे हुए वरदान वापस लेती हैं और राम को वचनों से मुक्त करती हैं। राम कहते हैं कि वचन वापसी का अधिकार केवल पिता दशरथ के पास था और अब वो परलोक सिधार चुके हैं अतएव उनके वचन अनुरूप कार्य करना ही एकमात्र विकल्प है। भरत राम की कुटिया के सामने अन्न जल त्याग कर मरने तक वहाँ धरना देने की घोषणा करते हैं। भरत की इस बात से राम अन्दर तक हिल जाते हैं। तभी एक दूत राजा जनक और रानी सुनयना के चित्रकूट पहुँचने की सूचना लाता है। वशिष्ठ राजा जनक के आगमन तक के लिये सभा स्थगित कर देते हैं।
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