Koyla Mata Temple Rajgarh Mandi Himachal Pradesh
Автор: Strange Himachal
Загружено: 2023-05-20
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हिमाचल, देवी देवताओं की भूमि है और यहां की आबोहवा में कई रोचक कहानियां छुपी हैं। ये कहानी है कोयला माता मंदिर की। कोयला माता मंदिर मंडी जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूर स्थित है। माना जाता है कि माता शक्ति ने यहाँ कोलासुर नामक राक्षस का वध किया था और लोगों को उसके प्रकोप से बचाया था जिस कारन इसका नाम पड़ा। यहां माता के दर्शन के लिए दूर-दूर से लोग आते है।
लोक कथाओं के अनुसार, प्राचीन समय में राजगढ़ की पहाड़ी पर यह मंदिर एक चट्टान के रूप में ही था। बाद में यह मंदिर कैसे अस्तित्व में आया और कोयला माता की पूजा अर्चना कैसे शुरू हुई इसके बारे में एक कथा प्रचलित है। कहा जाता है की उस समय राजगढ़ और आस-पास के क्षेत्र में दिन-प्रतिदिन मातम का माहौल छाया रहता था। हर दिन किसी न किसी के घर पर, कोई न कोई व्यक्ति मृत्यु का शिकार हो जाता। इस तरह राजगढ़ क्षेत्र का दाहुल शमशान घाट किसी भी दिन बिना चिता जले नहीं रहता था। यदि किसी दिन शमशान घाट में शव नहीं पहुंचता तो उस दिन वहां पर घास का पुतला जलाना पड़ता था।
स्थानीय लोगों के मन में ये धारणा बन गई कि चिता के न जलने से किसी प्राकृतिक प्रकोप व् आपदा सामना करना पड़ेगा। इस तरह घास के पुतले को जलाने की प्रथा से यहां शुरू हो गई और जिस भी दिन कोई मृत्यु नहीं होती लोग शमशानघाट में घांस का पुतला जलाते।लेकिन हर दिन अंतिमसंस्कार कर लोग तंग आ गए थे और इस से छुटकारा चाहते थे। हर दिन दुःख दुखी से बचने के लिए क्षेत्र के लोगों ने देवी माँ के आगे प्रार्थना की। लोगों की प्रार्थना से माँ काली प्रसन्न हो गईं और देखते ही देखते एक व्यक्ति में देवी प्रकट हो गईं और वह व्यक्ति माँ की वाणी बोलने लगी। स्थानीय भाषा में इसे “खेलना ” कहते हैं।
जभ वह व्यक्ति खेल गया तो माता का आदेश बताते हुए उसने कहा-“मैं यहाँ की कल्याणकारी देवी हूँ……तुम्हें घास के पुतले जलाने की प्रथा मुक्त करती हूँ। सुखी रहो और मेरी स्थापना यहीं कर दो।" लोगों ने जब व्यक्ति के मुख से देवी के वाक् सुने तो उन्होंने देवी से कही गई बातों का प्रमाण माँगा। इस पर उस खेलने वाले व्यक्ति ने पास की विशाल चट्टान की ओर इशारा किया और देखते ही देखते चट्टान से घी टपकने लगा। इसके बाद यहां से हमेशा घी बहता रहता था और इसका उपयोग लोग माँ की जोत जलाने के साथ ही अपने घर में भी करते थे।
वहीं अचानक कुछ समय बाद इस चट्टान से घी टपकना बंद हो गया। इस के बारे में बताय जाता है की एक बार एक गद्दी अपनी भेड़ बकरियां लेकर इस रास्ते से गुजर रहा था। चढ़ाई चढ़ने के बाद वो आराम के लिए उसी चट्टान के समीप बैठ गया और वहां बैठ कर खाना खाने लगा। फिर उसने अपनी रोटी पर घी लगाने के उद्देश्य से अपनी जूठी रोटी चट्टान पर रगड़ने दी। जूठन के फलस्वरूप उसी दिन से चट्टान से घी टपकना बंद हो गया।
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