प्रस्थानत्रयम्Prasthanatrayam-KenaUpanishad-केनोपनिषत्-ByVid.MM.Brahmarishi Dr.Manidravid Sastri
Автор: परमार्थसद्विद्या विवॆक:
Загружено: 2025-11-13
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Part-1
प्रस्थानत्रयम्Prasthanatrayam-KenaUpanishad-केनोपनिषत्-ByVid.MM.Brahmarishi Dr.Manidravid Sastri(Hindi)
केनोपनिषद सामवेद के तलवकार ब्राह्मण से संबंधित एक प्राचीन उपनिषद है, जो "किसके द्वारा" के प्रश्न से शुरू होता है और ब्रह्म के स्वरूप पर विचार करता है। यह गुरु-शिष्य संवाद के माध्यम से आत्मा और ब्रह्मांड के मूलभूत सत्य की खोज करता है, जो केवल प्रत्यक्ष ज्ञान से ही संभव है न कि बौद्धिक विश्लेषण से। यह उपनिषद देवताओं के अभिमान के खंडन और ब्रह्म-तत्व की अनुभूति के महत्व पर भी प्रकाश डालता है।
मुख्य बिंदु
सामवेद से संबंध: केनोपनिषद सामवेद की तलवकार शाखा से संबंधित है।
नाम का अर्थ: इसका नाम इसके पहले श्लोक "केन-इशितम्" (किसके द्वारा प्रेरित) से लिया गया है, जिसका अर्थ है "किसके द्वारा"।
संरचना: यह चार भागों में विभाजित है, जिसमें पहले दो भाग पद्य रूप में और अगले दो भाग गद्य रूप में हैं।
विषय वस्तु:
यह गुरु और शिष्य के बीच संवाद के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जहाँ जीवन और ब्रह्मांड के प्रेरक तत्व पर चर्चा की जाती है।
यह बताता है कि परम सत्य इंद्रियों से परे है और केवल आत्म-अन्वेषण से ही जाना जा सकता है।
यह देवताओं के अभिमान की एक कहानी बताता है, जहाँ वे ब्रह्म की शक्ति को गलत समझते हैं। इसके बाद, उमा देवी प्रकट होकर उन्हें ब्रह्म-तत्व का ज्ञान देती हैं।
लक्ष्य: इसका मुख्य लक्ष्य मन को स्थूल से सूक्ष्म की ओर ले जाना और मनुष्य को श्रेय के मार्ग की ओर प्रेरित करना है, जिससे वह ब्रह्म-चेतना के साथ एक हो सके।
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