Ram - Poem by Bhupendra singh khidia - Habitat poetry
Автор: Bhupendra Singh Khidia
Загружено: 2023-05-18
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यह कविता व्यंग्य है उन लोगों पर जो प्रभु श्री राम के नाम का दुरुपयोग करते हैं। यह कविता उन लोगों पर व्यंग्य हैं जो स्वयं को संकटमोचन श्री हनुमान जी भी स्वयं को बड़ा भक्त समझते हैं और आए दिन भगवान का नाम लेकर इधर उधर दंगा फ़साद करते हैं। यह कविता उन लोगों पर व्यंग्य है जो स्वयं अपने करमों से तो रावण हैं किंतु यह दर्शाते हैं जैसे वे ही श्री हरि हों।
राम नाम का मतलब क्या,
जब पूण्य भरी ही त्वचा नहीँ?
जब वर्तमान में
सत्व राम का
कण भर भी कहीँ बचा नहीँ
जहाँ राम रूप में बैठे दशानन
पग-पग पूजे जाते हैं
जहाँ लेकर हरि का नाम युद्ध में
नकली बन्दर जाते हैं
जहाँ व्यक्ति
बजरंगी से बढ़कर
भक्त बना मंडराता हो
जो राम बने बैठे रावण को
ही फिर धोक लगाता हो
जहाँ झूठ रोजाना टी.वी. पर
सच्चाई को झुठलाता है
और लंका कह कर आग राम की
कुटिया में लगवाता है
जिस नाटक की पटकथा
है बिल्कुल विपरीत असलीयत से
जिसके सारे संवाद लिखे सत्ता ने
अपनी नीयत से
जहाँ होगा बिल्कुल वैसा ही
जैसे इक रावण चाहेगा
उस नाटक का मंचन होगा तो
केवल भ्रम ही आएगा
कोरा भ्रम ही आएगा ।
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