गुरु-शिष्य परंपरा का रहस्य | ज्ञान योग की व्याख्या | श्रीमद्भगवद गीता अध्याय 4 श्लोक 1,2,3 |
Автор: Dr Mukesh Aggarwal
Загружено: 2025-09-16
Просмотров: 37
इस वीडियो में Dr. Mukesh Aggarwal जी श्रीमद् भगवद गीता अध्याय 4 (ज्ञान योग) के श्लोक 1, 2 और 3 का गहन व्याख्यान प्रस्तुत कर रहे हैं।
इन श्लोकों में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताया है कि यह दिव्य ज्ञान (योग) कितना प्राचीन है, किस प्रकार से यह सूर्यदेव से प्रारंभ हुआ और गुरु-शिष्य परंपरा से चलता आया है। परंतु समय के साथ यह नष्ट हो गया और अब श्रीकृष्ण स्वयं अर्जुन को यह ज्ञान प्रदान कर रहे हैं।
📜 श्लोक 1
श्रीभगवानुवाच
इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम्।
विवस्वान्मनवे प्राह मनुरिक्ष्वाकवेऽब्रवीत्॥
भावार्थ:
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं – मैंने इस अविनाशी योग को सूर्यदेव (विवस्वान्) को बताया। विवस्वान् ने इसे मनु को और मनु ने इसे इक्ष्वाकु को कहा।
📜 श्लोक 2
एवं परम्पराप्राप्तमिमं राजर्षयो विदुः।
स कालेनेह महता योगो नष्टः परन्तप॥
भावार्थ:
ऐसे ही यह योग गुरु-शिष्य परंपरा से प्राप्त होता हुआ राजर्षियों द्वारा जाना गया। परंतु कालांतर में यह ज्ञान नष्ट हो गया, हे परंतप अर्जुन।
📜 श्लोक 3
स एवायं मया तेऽद्य योगः प्रोक्तः पुरातनः।
भक्तोऽसि मे सखा चेति रहस्यं ह्येतदुत्तमम्॥
भावार्थ:
आज वही पुरातन योग मैं तुझे कह रहा हूँ क्योंकि तू मेरा भक्त और सखा है। यही उत्तम रहस्य है।
👉 इस व्याख्या के माध्यम से Dr. Mukesh Aggarwal जी बताते हैं कि कैसे गुरु-शिष्य परंपरा और भक्ति भाव इस दिव्य ज्ञान के मूल आधार हैं।
यह केवल शास्त्र का ज्ञान नहीं बल्कि जीवन को दिशा देने वाला आध्यात्मिक मार्ग है।
✨ अगर आप श्रीमद् भगवद गीता को गहराई से समझना चाहते हैं तो यह वीडियो अंत तक ज़रूर देखें और अपने विचार कमेंट में साझा करें।
#ShreemadBhagwatGita #BhagavadGitaExplained #DrMukeshAggarwal #SpiritualWisdom #Adhyay4
Доступные форматы для скачивания:
Скачать видео mp4
-
Информация по загрузке: