व्रत कब और कैसे करना चाहिए? उपवास से लाभ क्या है?
Автор: KABIR KI NAZAR SE
Загружено: 2025-11-16
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व्रत का सच्चा अर्थ सिर्फ़ भोजन न छोड़ना नहीं, बल्कि मन की अशुद्धियों को त्यागना है। कबीर साहेब कहते हैं –
“मन का व्रत कर, जिह्वा का निग्रह कर, तभी परमात्मा मिलेगा।”
अर्थात यदि पेट खाली और मन भरा रहे — क्रोध, द्वेष, जलन, वासना और ईर्ष्या से — तो ऐसा व्रत व्यर्थ है।
व्रत तब सार्थक है जब आत्मा प्रभु में लीन हो और मन निर्मल।
कबीर साहेब के अनुसार व्रत कब करें?
✔ जब मन भटका हो और भीतर अशांति हो
✔ जब भीतर की लालसा, गुस्सा और मोह नियंत्रण में न हों
✔ जब आत्मा परमात्मा से मिलन की पुकार करे
✔ जब मनुष्य भीतर शुद्धि का भाव लाए
कबीर साहेब के अनुसार व्रत कैसे करें?
✨ भोजन का त्याग नहीं — बुरे विचारों का त्याग
✨ बाहरी दिखावा नहीं — भीतर की साधना
✨ लोगों को दिखाने के लिए नहीं — परमात्मा के लिए
✨ देह की भूख को नहीं — आत्मा की भूख को तृप्त करने के लिए
व्रत का मूल नियम —
“जहाँ मन स्थिर हो जाए, वहीं प्रभु उतरते हैं।”
जब मन शांत, विचार निर्मल, और भीतर प्रेम की धारा प्रवाहित हो — यही सही व्रत का क्षण है।
कबीर साहेब कहते हैं — “मन जीतों जग जीत।”
पहले मन पर विजय, फिर संसार आपके चरणों में।
इस वीडियो में आप जानेंगे —
🔹 सच्चे व्रत का रहस्य
🔹 व्रत और तपस्या में फर्क
🔹 मन को कैसे स्थिर करें
🔹 कबीर साहेब की दिव्य शिक्षा से व्रत को सफल कैसे बनाएं
अगर आप भी आत्मिक व्रत का वास्तविक मार्ग जानना चाहते हैं,
तो यह वीडियो आपकी आध्यात्मिक यात्रा की कुंजी है।
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वीडियो अंत तक देखें और आत्मा को जगाएं 🔥
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