अपने क्यारियों से आए प्याज़-लहसुन और मौसम के टमाटर...
Автор: Santosh Sharma
Загружено: 2025-06-03
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सांझ की दस्तक होने को है। रसोई में हलचल शुरू हो चुकी है — एक ओर दाल धीमी आँच पर पक रही है, और दूसरी तरफ कुछ लाल रंग में मीठापन घुलता जा रहा है।
आज कोई त्योहार नहीं, कोई दावत भी नहीं... बस मौसम ने टमाटरों की कीमत थोड़ी सी नीची कर दी, और दिल ने कहा — क्यों न कुछ बचा लिया जाए आने वाले दिनों के लिए?
टमाटर भले मंडी से आए हों, लेकिन रसोई में जो हाथ लगे प्याज़ और लहसुन पर — वो अपने ही आँगन की मिट्टी की महक लिए थे। हर काट, हर छौंक में जैसे अपनापन घुलता चला गया।
दाल की बात करें तो वो भी कोई नई रेसिपी नहीं — बरसों से चली आ रही है, मगर हर बार जब पकती है, तो घर के बुज़ुर्गों के चेहरे पर वही सुकून उतर आता है। कोशिश यही रहती है कि सूर्यास्त से पहले खाना बन जाए — ताकि स्वाद सिर्फ जीभ तक ही नहीं, शरीर और मन तक पहुँचे।
चूल्हा अब गैस का है, पर रसोई की आत्मा आज भी वहीं की वहीं है — जहाँ हर दिन, हर पकवान एक छोटी-सी कहानी कहता है।
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