“मम्मी ने कहा ‘वो पैसे देगी’… मैंने मुस्कराकर उन्हें पहले साइन करवा दिया!”
Автор: इंसाफ़ का बदला
Загружено: 2025-12-31
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दरवाज़े के पीछे से मैंने अपनी ही माँ को कहते सुना—“चिंता मत करो, पैसे वही देगी… जैसे हमेशा देती है।” और मेरी बहन हँस पड़ी। वो मेरी शादी को अपनी पाँचवीं सालगिरह का शो बनाकर पूरा बिल मुझ पर डालना चाहते थे। इस बार मैं रोई नहीं, लड़ी नहीं—मैंने बस खेल उनकी ही चाल से खेला। मैं बाहर से “अच्छी बेटी” बनी रही, अंदर से सबूत जोड़ती रही, और सही पल पर एक ऐसा कदम उठा दिया कि जिस जाल में मुझे फँसाना था… उसी में वो खुद फँस गए। ये कहानी है बाउंड्री, आत्मसम्मान और उस पल की—जब “परिवार” के नाम पर होने वाला शोषण आखिरकार रुक जाता है।
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