Moksharthi Pariwar
स्वयं ही स्वयं की शोध मे।।🧘♂️
भगवान ,परमेश्वर , गुरु सब मै स्वयं हु।।
भगवान और मेरे मे अंतर नही।।
अंतर माना है इसलिए अंतर मिट नही रहा है।।
वितरागी, सर्वज्ञ, हितोपदेशी सच्चे देव की पहचान।।
निर्ग्रंथ गुरु सच्चे गुरु।। तिलतुष् परिग्रह रहित।।
वितरागता की पोषक सच्ची जिनवानी ।।👍🏻
आँख बंद किया तो अंधेरा दिखा वो देखने वाले की सत्ता ही मै हु।।अपनी निधि को पहचान।। द्रव्य गुण पर्याय से अपने को समझ 🙏🏻🛐🧘♂️
०२० होता विश्व स्वयं परिणाम कर्ता बनना दुःख का काम…
०९४१ छोड़ना तो है, लेकिन उसकी विधि क्या है ? किस प्रकार से छोड़ना है ??
०२० एक दिन ऐसा आयेगा….
०१९ बैठ अपने प्रभु के पास ज्ञायक लखु…
०९४० जैसे राग और आत्मा भिन्न है वैसे ही आत्मा और पर्याय भिन्न है क्या ?? सिद्ध कौन है ??
०९३९ ग़ज़ब ! अनन्तकाल से चली आ रही एकत्त्वबुद्धि का जो मिथ्यात्व भाव भी वस्तु में नहीं !
०९३८ द्रव्य गुण पर्याय का स्वभाव क्या है ? स्वतंत्रता का ढिंढोरा !
०९३७ वस्तु स्थिति : द्रव्य और पर्याय के प्रदेश भेद है। द्रव्य पर्याय का कर्ता नहीं-स्पर्शता नहीं।
०९३६ धन्य मुनि दशा !! अल्प ज्ञान में भी भगवान आत्मा जानने में आ ही रहा है !
०९३५ राग की पर्याय तो जीव की नहीं, लेकिन राग को जाननेवाली ज्ञान पर्याय भी जीव की नहीं !
०९३४ आत्मा कर्ता, भोक्ता जो है सो है ! हमे तो बस एक आत्मा जो है वह चाहिए !
०९३३ दोष किस बात का ?? — जाननेमें दोष नहीं ! कर्तृत्त्वपने का दोष है !
०९३२ अज्ञानी अज्ञानरूप ज्ञान-परिणाम का कर्ता होता है या मानता है की कर्ता है ?
०१८ निज की महिमा तु कर, निज को निज मे समा....
०१७ निरखत जिनचंद्र वदन स्वपद सुरुचि आई....
०९३१ ऐसा अवसर कब मिले ? भव चला जा रहा है ! यह वस्तु नहीं मिली तो कहाँ चला जाएगा ?! सोचना चाहिए !
०१६ मै परमात्मा हूँ.... चैतन्य के नूर का पुर मै...
०१५ प्रभु का दर्शन वीतरागता का दर्शन....
०९३० परमार्थ से अन्यद्रव्य अन्यद्रव्य के भाव का कर्ता नहीं होने से भावकर्म का कर्ता जीव स्वयं ही है!
०१४ सिद्धो के लघुननंद मुनिवर मुनिवर....
०१३ सिद्ध हूँ मैं… सिद्ध हूँ मैं… सिद्ध हूँ मैं…
०९२९ जानना करने में भी कर्तापन ही पड़ा है ! जानने की एक समय की पर्याय भी एक समय का सत् है !
०१२ भेदज्ञान की कला.. भव के अभाव की कला..
०११ सच्चा जीवन वही जो बाहर से मर जावे…
०१० जिसे जिनरूप दिख जाये…
०९२८ पर का करता भोक्ता तो दूर रहा, पर को जानना भी यहाँ तो व्यवहार कहा है !
०९२७ जैसे सर्प अपने स्वभाव को नहीं छोड़ता वैसे ही अज्ञानी भी प्रकृतिस्वभाव को नहीं छोड़ता वेदक है!
००९ अगर कहान गुरु ना होते….
०९२६ है निपुण पुरुष ! अज्ञानता को छोड़ ! राग में रहना जैनदर्शन नहीं है, अन्य दर्शन है !
हम सबके तारनहार पूज्य श्री कहान गुरुदेव 🙇♂️🙏🏻🛐