०११
Автор: Moksharthi Pariwar
Загружено: 2025-11-14
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सच्चा जीवन वही जो बाहर से मर जाये
अंदर से जाग जाये
सच्चा जीवन जीवंत प्रभु को जाने
सच्चा धर्म वस्तु स्वभाव के निर्णय मे
धर्म का मर्म समझ चेतन जीवन मृत्यु तरफ भागे
जिसको जिसकी रुचि उसको उसका ध्यान सहज चलता है
आँख बंद करने से ध्यान नही, ध्यान सहज है
रुचि अनुयायी वीर्य है, बस मुझे मेरी रुचि सत् प्रतिशत है
तो उपयोग आत्मा तरफ सहज दौड़ा आता
धर्म को कल पर छोड़ने वाले को रुचि न कहते
धर्म जिसे करना है वे कल करूँगा न कहते
महिमा रुचि बस एक ज्ञायक की है,
वह सब तरफ से मर जाता
सच्चा जीवन वही जो बाहर से मर जाये
अंदर से जाग जाये
सच्चा जीवन जीवंत प्रभु को जाने
सच्चा धर्म वस्तु स्वभाव के निर्णय मे
धर्म का मर्म समझ चेतन जीवन मृत्यु तरफ भागे
जब तक अपनी सत्ता न भासे,
जड़ शरीर की महिमा मे चलता मडदा सा जीवन
अचेतन मे चेतनता भासे, शाश्वत वस्तु क्षणिक भासे
मानो भले कल्पना से वस्तु चैतन्य नूरपुर रहे
सुख निरंतर जो चाहे, जहाँ है वहा देखे तो मिले
स्वप्न की मिठाई भूख न मिटाये
कल्पना ,अज्ञानता से सुख न मिले
वस्तु स्वरूप तीन काल मे न बदले,
तेरी मति से गति बदले
सच्चा जीवन वही जो बाहर से मर जाये
अंदर से जाग जाये
सच्चा जीवन जीवंत प्रभु को जाने
सच्चा धर्म वस्तु स्वभाव के निर्णय मे
धर्म का मर्म समझ चेतन जीवन मृत्यु तरफ भागे
फूल शमशान मे हो या बगीचे मे
सुगंध सदा एक सी बिखरे
आत्मा की प्रतीति करो या न करो
आत्मा तो सदा ज्ञायकरूप रहे
अज्ञानी हो या ज्ञानी चैतन्य किरण सदा फैले
आनंद किरण सदा फैले
सच्चा जीवन वही जो बाहर से मर जाये
अंदर से जाग जाये
सच्चा जीवन जीवंत प्रभु को जाने
सच्चा धर्म वस्तु स्वभाव के निर्णय मे
धर्म का मर्म समझ चेतन जीवन मृत्यु तरफ भागे
धर्म का मर्म समझ चेतन जीवन मृत्यु तरफ भागे
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