Devendrakumar Jain, Bijoliya
जैनदर्शन के सिद्धांतों तथा शास्त्रो के उपर प्रवचन।
०१०९ गुरु कहान द्रष्टि महान १ १— पात्रता ! छूटने का रास्ता— चैतन्य की चैतन्यमें से परिणमीत भावना !
०१०८ गुरू कहान द्रष्टि महान १ ४ — क्रमबद्ध के निर्णय का फल द्रव्यद्रष्टि होना अनंतसुखी होना ।
November 11, 2025
०१०७ गुरु कहान द्रष्टि महान १ ३ — जिसमें पर्याय नहीं ऐसे द्रव्य पर पर्याय की दृष्टि करना है !
November 11, 2025
November 11, 2025
November 11, 2025
०१०६ गुरू कहान द्रष्टि महान १ २ — ज्ञान वैराग्य के सिंचन से अमृत मिलेगा और राग से दुर्गति मिलेगी !
०१०५ गुरु कहान द्रष्टि महान १ १ — वास्तव में पर को जानता ही नहीं ! थोड़ा धैर्य से समझना चाहिए !
०१०४ GKDM १ २ — भगवान आत्मा मिथ्यात्व का कर्ता भी नहीं ! समयसार तो अशरीरी होने का शास्त्र है !
०१०३ गुरु कहान द्रष्टि महान १ १ — जिनवर ऐसा कहते हैं की जीव उपजता भी नहीं और जीव मरता भी नहीं !
०१०२ वैराग्य प्रवचन — संयोग की अनित्यता ! दुखों की है अपारता !
०१०१ GKDM १ ४ — जानने की पर्याय भी सत् होने से “है”! निरपेक्ष है। जो “है” उसको करना क्या !
November 4, 2025
०१०० GKDM १ ३ — उदय है ! बंध है ! निर्जरा है ! मोक्ष है ! है उसको जानता है ! है उसको करना क्या !
०९९ गुरु कहान द्रष्टि महान १ २ — बंध का कर्ता नहीं, ज्ञाता है ! मोक्ष का कर्ता नहीं, ज्ञाता है !
०९८ गुरु कहान द्रष्टि महान १ १—भगवान आत्मा राग का कर्ता भोक्ता नहीं है।व्यवहार से ज्ञाता मात्र है!
November 1, 2025
०९७ GKDM १ १ श्रुत पंचमी पर्व — देव शास्त्र गुरु के प्रति जो राग शुभभाव है वह भी हिंसा है !
०९६ गुरु कहान द्रष्टि महान १ ४ — औदायिक, औपशमिक, क्षयोपशमिक और क्षायिकभाव से भी आत्मा अगम्य है !
October 31, 2025
०९५ गुरु कहान द्रष्टि महान १ ३—पात्र बिना के साधु ढूँढ लिये ! धन्य मुनिदशा ! धन्य आचार्य कुंदकुंद !
०९४ गुरु कहान द्रष्टि महान १ २ — सर्व गुणांश वह समकित ! 1
October 29, 2025
October 28, 2025
०९३ गुरु कहान द्रष्टि महान १ १ — भगवान आत्मा निरंतर वर्तमान निरंतर वर्तमान है ।
०९२ गुरु कहान द्रष्टि महान १ ४ — काल में मोक्ष और अकाल में मोक्ष, फिर भी दोनों एक ही समय में !!!
०९१ गुरु कहान द्रष्टि महान १ ३ — श्रावक के रत्नत्रय बहीरतत्त्व है ! अतींद्रिय आनंद भी परद्रव्य है!
०९० गुरु कहान द्रष्टि महान १ २ — शुद्धरत्नत्रय की भक्ति करनेवाले को निर्वाणभक्ति है !
०८९ गुरु कहान द्रष्टि महान १ १ — संवर, निर्जरा और मोक्ष की पर्याय भी हेय है ।!