०१०८ गुरू कहान द्रष्टि महान १ ४ — क्रमबद्ध के निर्णय का फल द्रव्यद्रष्टि होना अनंतसुखी होना ।
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०११६ GKDM १ ४ — आत्मार्थी को सब से पहले सीधा आत्मा को जानना चाहिए ! फिर जाने हुवे का श्रद्धान करे !
०११७ गुरू कहान दृष्टी महान १ १ — अपने द्रव्य गुण पर्याय का विचार करना भी पराधीनता है !
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०१११ १ ३ — “तीर्थंकर हो कर मोक्ष जाना है ।” साधारण वांचन विचार से कार्य सिद्धि नहीं होगी ।
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०११४ गुरू कहान द्रष्टि महान १ २ — मोक्षार्थी को पहले में पहले आत्मा को जानना चाहिए ! ये शर्त है !
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०११० १ २ — नैतिक जीवन की कीमत ! किन परिणामों का फल क्या होगा by पूज्य गुरुदेवश्री
Hariprasad Swamiji Paravani - 10 October 1993
०११५ GKDM १ ३— मंदिर कौन बना सकता है मंदिर परमाणु की रचना है ! उससे आत्मा को किंचित् भी लाभ नहीं !
०११२ GKDM १ ४ — स्वाध्याय मनन आत्मार्थी की खुराक है ! समयसार तो अशरीरी होने का शास्त्र है !
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osho : मंदिर या दुकाने। मंदिर, मस्जिद और गुरुद्वारे—कया इन में भगवान रहते हैं?”
बारह भावना । Barah Bhawna । मुनिश्री प्रवर सागर जी महाराज द्वारा कृत । स्वर शरद जैन // pravar vani//