RadhaRas SudhaNidhi- 163
Автор: Govind Dev Ji
Загружено: 2025-10-19
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जो (अपने) अंग-प्रत्यंग के संचालन से उत्पन्न मधुरतर महाकीर्ति-पीयूष की सिन्धु हैं, जिनका वदन कोटि चन्द्रमाओं को भी लजाने वाला है, जिनके नेत्र अति मदविह्वल हैं और जो अत्यन्त सुकुमारी अद्भुत ललिततनु हैं-उन्हीं श्रीराधा की आनन्द-प्रवाहिनी केलि- कल्लोलिनी के प्रणयरसमय प्रवाह में अवगाहन का सौभाग्य क्या मैं प्राप्त करूँगा? ॥ 163 ॥
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