RadhaRas SudhaNidhi- 165
Автор: Govind Dev Ji
Загружено: 2025-10-21
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जाग्रत, स्वप्न और सुषुप्ति सभी दशाओं में मेरे चित्त में राधापद-कमलों की छटा स्फुरित हो; मैं वैकुण्ठ या नरक जहाँ भी जाऊँ, राधा के बिना मेरी और कोई गति न रहे। मेरा मन राधाकेलि-कथारूपी सुधा-सिन्धु की सुविशाल कल्लोलमालाओं से आन्दोलित होकर यमुना-तटवर्ती कुञ्जमन्दिर के प्राङ्गण में विराज करे ॥ 165 ॥
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