RadhaRas SudhaNidhi- 174
Автор: Govind Dev Ji
Загружено: 2025-10-30
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जो गात्र-शैथिल्य आदि निमिषमात्र के विच्छेद के आभास को भीतर-बाहर प्रदीप्त कोटि प्रलय-अग्नियों की ज्वालावत् अनुभव कर रही हैं, उन अद्भुत प्रेम-मूर्तियों-प्रगाढ़ स्नेहानुबन्ध में ग्रथित राधामाधव नामक दो मधुर परम ज्योतियों को मैं समझ गई हूँ ॥ 174 ।।
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