प्रथम मास आषाढ़ बरीसे गहरे घटा घनघोर हे । बारहमासा । लोकगीत । स्वर : कुंदन कुमार । आकाशवाणी पटना ।
Автор: गीत गाछ
Загружено: 2024-09-03
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विशेष आभार : आकाशवाणी पटना
प्रथम मास आषाढ़ बरीसे गहरे घटा घनघोर हे शीर्षक का यह बारहमासा शैली में गाया गया लोकगीत है जिसको स्वर कुंदन कुमार ने।
बारहमासा (पंजाबी में बारहमाहा) मूलतः विरह प्रधान लोकसंगीत है। वह पद्य या गीत जिसमें बारह महीनों की प्राकृतिक विशेषताओं का वर्णन किसी विरही या विरहनी के मुँह से कराया गया हो। मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित पद्मावत में वर्णित बारहमासा हिन्दी का सम्भवतः प्रथम बारहमासा है (Note-बीसलदेव रासो वह रचना है जिसमें बारहमासा का सर्वप्रथम वर्णन मिलता है )।
वर्ष भर के बारह मास में नायक-नायिका की शृंगारिक विरह एवं मिलन की क्रियाओं के चित्रण को बारहमासा नाम से सम्बोधित किया जाता है। श्रावण मास में हरे-भरे वातावरण में नायक-नायिका के काम-भावों को वर्षा के भींगते हुए रुपों में, ग्रीष्म के वैशाख एवं जयेष्ठ मास की गर्मी में पंखों से नायिका को हवा करते हुए नायक-नायिकाओं के स्वरुप आदि उल्लेखनीय है।
जब किसी स्त्री का पति परदेश चला जाता है और वह दुखी मन से अपने सखी को बारह महीने की चर्चा करती हुई कहती है कि पति के बिना हर मौसम व्यर्थ है। इस गीत में वह अपनी दशा को हर महीने की विशेषता के साथ पिरोकर रखती है।
ऐतिहासिक दृष्टि से बारहमासा, संस्कृत साहित्य का षडऋतु वर्णन की राह का काव्य है। कालिदास का ऋतुसंहार षडऋतुवर्णन ही है।
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