श्रीमद्भागवत महापुराण: प्रथम स्कंध | दशम अध्याय | श्री कृष्ण का द्वारका गमन
Автор: Shri TaraGiri Ji Maharaj
Загружено: 2025-11-29
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भीष्म पितामह के उपदेश और भगवान श्री कृष्ण की प्रेरणा से महाराज युधिष्ठिर ने राजसिंहासन स्वीकार किया। हस्तिनापुर में युधिष्ठिर का विधिवत राज्याभिषेक हुआ, और वे धर्मपूर्वक राज्य का संचालन करने लगे। इस अवसर पर भगवान श्री कृष्ण वहाँ उपस्थित रहे और उन्होंने धर्मराज युधिष्ठिर के राज्य स्थापित करने में पूर्ण सहयोग दिया।
श्री कृष्ण ने कुरुक्षेत्र युद्ध में पांडवों के सारथी, मित्र और मार्गदर्शक के रूप में अपनी भूमिका निभाई थी। उनके बिना पांडवों की विजय असंभव थी। अतः, सभी पांडव और प्रजाजन श्री कृष्ण को परमेश्वर के रूप में पूजते थे और उनके प्रति असीम कृतज्ञता व्यक्त करते थे।
सभी पांडवों और हस्तिनापुर की प्रजा से विदा लेकर, भगवान श्री कृष्ण द्वारका के लिए प्रस्थान करते हैं। उनके जाने से हस्तिनापुर में एक अजीब सी उदासी छा जाती है, जैसे सूर्य के अस्त होने पर प्रकाश चला गया हो।
श्री कृष्ण अपनी द्वारका नगरी की ओर बढ़ते हैं, जहाँ उनके दर्शन के लिए द्वारकावासी पहले से ही उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रहे होते हैं। इस प्रकार यह अध्याय श्री कृष्ण की भक्त-वत्सलता और उनकी लीलाओं के महत्व को दर्शाता है, जो समय-समय पर भक्तों को मार्गदर्शन और आनंद प्रदान करती हैं।
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