वह अंतिम उपदेश जो मृत्यु के देवता ने नचिकेता को दिया कठोपनिषद (नीचे पढ़ो)
Автор: Gita Online
Загружено: 2025-11-06
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उपनिषदों का ज्ञान मनुष्य की समझ में वह अनासक्ति विकसित करने में सहायक है जिसके द्वारा जीव अपने जीवन रूपी संग्राम में अनेकों प्रकार के उतार चढ़ाव को सहजता पूर्वक पार कर जाता है। विचार करके देखो तो अभी तक का पूरा जीवन खट्टे मीठे और कड़वे अनुभवों का एक स्वप्न ही था।
अभी तक के जीवन में अनेकों निर्णय गलत और उचित भी लिए गए जिनके परिणाम सुखद और दुखद भी रहे। कई बार अनेकों कष्टों की वेदना तो कभी किसी अभाव ने मन को कचोटा। तो कभी अशक्ति ने आ कर घेरा की बेबसी की घुटन को झेलना हुआ। सत्य तो यह है की मनुष्य का जीवन कुछ ऐसा ही बीतता है। सभी कुछ मन चाहा तो सम्राटों को भी नहीं मिलता। अगर पूर्ण सुख मनुष्य को प्राप्त हो जाता तो इस पृथ्वी पर केवल दिव्य प्राणी ही शेष बचते।
विज्ञानं और साधनो की भरमार आज के युग में है पर फिर भी मनुष्य का मानस स्थिरता को मृगतृष्णा की भांति खोजते हुए भटकता फिरता है। क्यों ? इसलिए चूँकि यह खोज आसक्तियों के साथ सभी को भटकाती ही है। तो क्या मानवी जीवन में सपने बुनना छोड़ दें। तो क्या अपने निर्धारित दायित्वों की पूर्ति को त्याग दें। तो क्या सभी मर्यादाओं से विमुख हो जाएं। तो क्या चुनौतियों का सामना करने से हट जाएं। तो क्या एक समृद्ध जीवन हेतु प्रयासों से हट जाएं। नहीं नहीं नहीं - ऐसा कदापि नहीं करना है। तो फिर क्या करना है ?
इसी सभी के बीचे अर्थात कटे बंटे और अधूरे जीवन के क्रम में स्वयं को एक ऐसी समझ से संस्कारित एवं प्रकाशित करना है जिससे जीवन के किसी भी अधूरेपन का सामना पूर्ण स्थिरता एवं शांति से सम्भव हो। कुछ ऐसा करना है की अभाव - अज्ञान और अशक्ति के प्रति संग्राम में एक पराक्रमी योद्धा की भांति हम संग्राम में जुटे रहें पर कहीं से भी अधीर- हताश अथवा भीरु भाव से पूरित नहीं हों। प्रत्येक विषम स्थिति में भी आंतरिक स्थिरता और शांति ऐसी बनी हो जैसे तूफान में खाद अचल पर्वत। तो क्या यह सम्भव है अथवा केवल कोई कपोल कल्पना।
नहीं यह कोई कपोल कल्पना नहीं है। यह सम्भव है और पूर्णतः सम्भव है। पर यह सम्भवना वैसे चरितार्थ नहीं होती जिस प्रकार बिजली का ऑन और ऑफ का स्विच कार्य करता है अपितु धीरे धीरे आसक्तियों की पकड़ ढीली होती है और आसक्तियाँ जब ढीली पड़ने लगती हैं तो वृत्तियाँ हमें विवश करके अपनी मनमानी नहीं चला पाती हैं। जिसका परिणाम निकलता है शांत - स्थिर - उत्साह से भरा हुआ अंतःकरण।
एक सी परिस्थितियों में जहाँ अन्य दारुण दुःख का भाजन बनते हैं वहीँ ऐसा उत्कर्ष प्राप्त जीव उन्हीं स्थितियों में मुस्कुराते हुए अक्षुण्ण रूप में अपनी मस्ती बटोरे जीवन में आगे बढ़ता जाता है। केवल इतना ही नहीं - इसके अतिरिक्त प्रत्येक निर्णय अहंकार अथवा दिखावे हेतु नहीं अपितु किसी मूल कारण की सेवा में उपस्थित होने लगते हैं। ऐसा जिव दिव्य सूक्ष्म जगत को भी आकर्षित करते हुए अपने ही भीतर स्वगुरु बोध जैसी अद्वितीय निधि को जगाने में सक्षम हो जाता है।
यह सभी कुछ सम्भव करवाने में केवल और केवल आत्मविद्या ही सक्षम है। नचिकेता का मृत्यु से संवाद वही रहस्य है जो मनुष्य को इतना सबल सक्षम बनाता है की वह सामान्य आवरण में एक योगी की भांति विचरण आरम्भ कर दें। अगर ध्यान से विचार करो तो मृत्यु के देवता अर्थात यमाचार्य अनुशासन के देवता हैं जो इस बात की स्थापना करते हैं की आत्मविद्या के अभाव मनुष्य एक बार नहीं अपितु एक ही जीवन में हजारों बार मरता है।
अगर इन बातों का तुम्हें कोई मर्म समझ आ रहा हो तो कठोपनिषद के ऑनलाइन अध्ययन हेतु आगे आओ। हम न जाने उस मनोरंजन के लिए अपना कितना समय - ध्यान - ऊर्जा एवं संसाधन का खर्च करते ही जाते हैं जिसका कुल निष्कर्ष शून्य ही रहता है। पर उन सभी विषयों के प्रति उपेक्षा बरत जाते हैं जिनके द्वारा हमारा मनुष्य होना सार्थक होगा। वेदों के निष्कर्ष का अध्ययन उनमें से एक महत्वपूर्ण कार्य है। मैं धन्य हूँ की ईश्वर ने मुझे अध्यापक स्वरूप आजीविका एवं आत्मसंतोष के लिए ऐसी विषयों का अध्यापन करने का सुअवसर प्रदान किया है।
इस सम्बन्ध में कोई भी अगर मन में शंका हो तो मुझे [email protected] पर मेल लिख कर अवश्य बताओं , यथा क्षमता निदान देने की चेष्टा रहेगी पर संकोच के वशीभूत चुप नहीं रह जाना है।
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