भावशुद्धि आत्महित के लक्ष्य से ही संभव है । (भाग - 2)
Доступные форматы для скачивания:
Скачать видео mp4
-
Информация по загрузке:
भावशुद्धि आत्महित के लक्ष्य से ही संभव है । (भाग - 3)
संवेग भावना .......
Never Frustrate! By Aacharya Shri UdayVallabhSuriji
#208. पंच समवाय और ज्ञान की स्वतंत्रता का सुमेल (Part - 2)| श्री कु. सा. वसदि, शिखर जी, दोपहर. 20.12
प्रथमानुयोग के व्याख्यान का विधान (भाग - 2)
जिनने किये धरम उनके फूटे करम - क्या कारण है की धर्मी जीवों को पाप का उदय ज्यादा आता है
दुख के कारण के अभाव बिना दुख दूर करने का उपाय केवल भ्रम है ।
53 मोक्षमार्ग प्रकाशक Live संयोग कैसे मिले वेदनीय के उदय जन्य अवस्था Page 41 42
श्रुत परंपरा का संक्षिप्त इतिहास 👌🏻👍🏻🙏🏻 || पण्डित मनीष जी शास्त्री || #jainhistory #jainphilosophy
चारों अनुयोगों का तात्पर्य वीतरागता ही है ।
आत्मा का हित आत्मा में है ।
भावशुद्धि आत्महित के लक्ष्य से ही संभव है । (भाग - 1)
आत्मन् कलरव | बाल ब्र. पण्डित रवीन्द्र जी 'आत्मन्' | आध्यात्मिक पाठ संग्रह
105-समयसार गाथा -38 | डॉ.हुकमचंद भारिल्ल |28.08.2012
योगसार 184 जैनदर्शन में ईश्वरीय अवधारणा क्या है
कषाय की पूर्ति करने में नहीं , कषाय का अभाव करने में सही पुरुषार्थ है ।
पुण्य क्यों पतला हो रहा है || क्या पंचम काल में मोक्ष संभव है || समयसागर जी महाराज || Samaysagar Ji
जीवन के अनसुलझे प्रश्न 7 । मुनि क्षमासागर जी प्रवचन । @aagamkeparipekshme
ज्ञान में लीन होता हुआ ज्ञान ही परम शरण है ।
#210. नोकर्म को दोष देना सबसे बड़ा मिथ्यात्व है | श्री कु. सा. वसदि, शिखर जी, दोपहर. 21.12