Indian Literature 13, NEP 2020, IKS, हयवदन, हयवदन और भारतीयता, गिरीश कर्नाड, भारतीय साहित्य 13.
Автор: Prof. S V S S Narayana Raju
Загружено: 2025-12-09
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This video presents the thematic exploration of “Hayavadana and Indian-ness (भारतीयता)” in Girish Karnad’s celebrated Kannada play Hayavadana (हयवदन), interpreted through the lens of the National Education Policy (NEP) 2020 and the Indian Knowledge System (IKS).
It highlights how the play’s symbolic imagination, mythic structure, philosophical motifs, and cultural expressions embody the holistic, inclusive, and deeply rooted vision of Indian-ness articulated in NEP 2020.
हयवदन और भारतीयता
गिरीश कर्नाड का नाटक हयवदन (1971) भारतीय रंगमंच की ऐसी कृति है जिसमें भारतीय मिथक, लोककथा, दर्शन और सामाजिक-सांस्कृतिक मूल्य आधुनिक संवेदनाओं से जुड़कर एक नया रूप ग्रहण करते हैं। इस नाटक की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसकी जड़ें पूरी तरह भारतीयता में निहित हैं।
“भारतीयता” का तात्पर्य है— भारतीय समाज, संस्कृति और जीवन मूल्यों का प्रतिबिंब।
यहाँ की विविध भाषाओं, जातियों, परंपराओं और दर्शन का संगम।
लोक और शास्त्र, मिथक और आधुनिकता का एक साथ प्रवाह।
हयवदन में यह सब एकीकृत होकर सामने आता है।
भारतीय लोककथा और पुराण परंपरा
नाटक का मूल स्रोत संस्कृत कथासरित्सागर और वेतालपंचविंशति की कथा है।
सिर बदलने की कथा भारतीय लोक-जीवन में प्रचलित है, जिसे गिरीश कर्नाड ने आधुनिक परिप्रेक्ष्य में रूपांतरित किया।
सूत्रधार और विदूषक जैसे पात्र नाट्यशास्त्र की पारंपरिक शैली को पुनर्जीवित करते हैं।
भारतीयता का संकेत : यह भारतीय रंग-परंपरा (नाट्यशास्त्र, लोकनाट्य) और मिथकीय आख्यानों की निरंतरता को दर्शाता है।
भारतीय दर्शन और द्वंद्व
नाटक का केंद्रीय प्रश्न है—मनुष्य की पहचान शरीर से है या मन/बुद्धि से?
यह प्रश्न भारतीय दार्शनिक परंपरा (सांख्य, वेदांत, योग) की जड़ों से जुड़ा है।
देवदत्त (बुद्धि) और कपिल (शरीर) के बीच का द्वंद्व भारतीय चिंतन में आत्मा–शरीर संबंध का प्रतीक है।
भारतीयता का संकेत : भारतीय चिंतन में “सिर की प्रधानता” का निर्णय वेदांत की उस मान्यता को पुनः पुष्ट करता है कि बुद्धि और आत्मा ही मनुष्य की पहचान का मूल है।
देवी-आस्था और नियति
देवदत्त और कपिल आत्महत्या काली मंदिर में करते हैं।
पद्मिनी देवी से प्रार्थना करती है और दोनों पुनर्जीवित होते हैं।
हयवदन भी देवी काली के पास अपनी संपूर्णता की याचना लेकर जाता है।
भारतीयता का संकेत : यह दिखाता है कि भारतीय जीवन-दर्शन में नियति, ईश्वरीय शक्ति और भक्ति केंद्रीय स्थान रखते हैं।
स्त्री का दृष्टिकोण – भारतीय समाज का प्रतिबिंब
पद्मिनी का आकर्षण देवदत्त और कपिल दोनों की ओर है।
वह पारंपरिक पत्नी होते हुए भी स्वतंत्र इच्छाओं वाली स्त्री है।
यह भारतीय समाज में स्त्री की स्थिति और उसकी इच्छाओं की स्वीकृति-अस्वीकृति की द्वंद्वात्मक अवस्था को उजागर करता है।
भारतीयता का संकेत : यह आधुनिक भारत में स्त्री-स्वतंत्रता और परंपरा के बीच के संघर्ष को दर्शाता है।
हयवदन और अधूरापन का रूपक
हयवदन आधा मनुष्य और आधा घोड़ा है।
वह अधूरेपन से मुक्ति चाहता है।
परंतु अंततः वह पूरा घोड़ा बन जाता है, मनुष्य नहीं।
भारतीयता का संकेत : यह रूपक भारतीय जीवन-दर्शन का प्रतिनिधि है—
“मनुष्य की नियति अधूरापन है। पूर्णता केवल ईश्वर की है।”
यह विचार भारतीय भक्ति साहित्य, वेदांत और संत परंपरा में गहराई से मिलता है।
लोकनाट्य और भारतीय रंगमंच की तकनीक
नाटक में सूत्रधार और विदूषक जैसे पात्र हैं, जो संस्कृत नाट्यशास्त्र और लोकनाट्य की परंपरा से आते हैं।
कथा और दर्शक के बीच सीधा संवाद भारतीय रंगमंच की विशिष्ट विशेषता है।
हास्य, व्यंग्य और प्रतीकात्मकता का मिश्रण लोकधारा को आधुनिक रंगमंच से जोड़ता है।
समकालीन भारतीय संदर्भ
हयवदन में पहचान का संकट (Identity Crisis) आधुनिक भारत में भी प्रासंगिक है।
जाति, भाषा, धर्म और आधुनिकता–परंपरा के बीच भारतीय समाज आज भी अपने को अधूरा महसूस करता है।
यह नाटक भारत की उसी सामूहिक मनोदशा को मूर्त करता है।
गिरीश कर्नाड का हयवदन भारतीयता की गहरी अभिव्यक्ति है। इसमें—
भारतीय लोककथा और पुराणों का पुनर्पाठ
भारतीय दर्शन के प्रश्न (शरीर–मन, अधूरापन–पूर्णता)
भारतीय नारी की स्थिति और संघर्ष
देवी-आस्था और नियति का भाव
लोकनाट्य की तकनीक
सब मिलकर इसे भारतीय रंगमंच की कालजयी कृति बना देते हैं। हयवदन यह संदेश देता है कि भारतीय समाज और व्यक्ति की पहचान उसकी अधूरी परंपराओं और आकांक्षाओं में ही छिपी है—पूर्णता केवल एक स्वप्न है।
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