ग्यान (ज्ञान) और अग्यान (अज्ञान)
Автор: Aghori mhabharamnad
Загружено: 2025-10-19
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जब सागर मंथन समाप्त हुआ और जब देवताओं ने अमृत पी लिया,
तभी एक असुर ने भी देव रूप में छलपूर्वक अमृत पी लिया।
उसी असुर का सिर “राहु” और शरीर “केतु” कहलाया —
यहीं से राहु-केतु की उत्पत्ति हुई।
दानवों ने कहा —
“चूँकि पृथ्वी पर अमृत की एक बूँद गिरी है,
इसलिए यह सम्पूर्ण पृथ्वी हमारी है।”
उसी क्षण से “धर्म” की शुरुआत हुई —
प्रथम धर्म था *हिन्दू धर्म*।
समय के साथ ईश्वर, मसीहा और अनेक अवतार प्रकट हुए।
कथा का सार यही है —
हम सबके भीतर कहीं न कहीं बुराई छिपी है।
और जब उस बुराई को दूर करने की आवश्यकता होती है,
तभी भगवान स्वयं अवतरित होते हैं।
भगवान का अर्थ भी यही है —
जो अंधकार से हमें प्रकाश की ओर ले जाए।
ॐ नमः शिवाय
ऋषि तंत्राचार्य अघोरी महाभरणाद
ॐ जगदीश भजन्त्रि
Natraj
Bagwan Ko kisi Ney nahi dekha yeah agayanta ka pratik hai Jo ek Roop hai.
Bagwan Ko paana gayan ka pratik hai
Isliye ise ki prapti Kay liye sansar hai.
OM namah shivaya
Rishi tantracharya Aghori mhabharamnad
OM Jagdish
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