Gita Ka Amrit Gyaan- 37 |जग सोता है, साधक जागता है। 17 May 2020 | Anand Dham Ashram
Автор: Sudhanshu Ji Maharaj
Загружено: 2020-05-16
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Sudhanshu Ji Maharaj
There are two kinds of beings-One who is involved in material activities for sense gratification, and the other who is awake to the cultivation of self-realization. Activities of the introspective sage, are ‘night’ for persons who are materially absorbed and vice versa
‘जागो रे दिन जागना..अब जागन की बार’..ये संदेश देते हुए आज समझाया गया है कि .. जहाँ ये जग जागता है, वहाँ साधक जागी हुई दुनिया के प्रति सोया हुआ है और जहाँ ये दुनिया सोई हुई है उस ओर योगी जागा हुआ है।
दुनिया के पदार्थ इकट्ठा करने में इतने मत उलझ जाओ कि अपने लक्ष्य को भूल जाओ..विवेकी धीर पुरुष अपने ‘धर्म संग्रह’ की तरफ़ जागा हुआ है..पर दुनिया के विषय वासना की तरफ़ सोया हुआ है..वह अपना कर्तव्य कर्म करते, बौधिक विकास के साथ अपने आध्यात्मिक विकास पर ध्यान रखता है और ‘आत्मनिरीक्षण’ करते हुए आगे अग्रसर होता है
संसार की कामनाएँ उसे हिलाने की कोशिश करती हैं पर उसकी मर्यादा भंग नहीं होती-वह शांत और अचल रहता है।
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