Shree chintamani parshvanath stotra || kim karpoormayam sudharas mayam || Jain stotra || Shuddha
Автор: Thinkin' Music
Загружено: 2020-06-30
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यह स्तोत्र सर्व प्रकार के विषों को दूरे करने वाला, कल्याण का आश्रय, प्रभाव एवं यश को बढ़ाने वाला तथा ऋद्धि, सिद्धि, आनन्द और मोक्ष को प्राप्त कराने वाला है।
हिंदी अनुवाद :
।।1।।
भगवान् श्रीपार्श्वनाथ का शरीर क्या कर्पूरमय और सुधारसमय था ? क्या चन्द्रकिरणमय था? क्या लावण्यमय, महामणिमय और कारुण्य की क्रीड़ा से युक्त था? क्या उनका वह शरीर सबके लिए आनन्दमय, महान् गौरवमय, शोभामय, चैतन्यमय तथा शुक्लध्यानमय था? चाहे वह शरीर कैसा भी क्यों न हो? वह मेरे लिए भवालम्बन बने।
।।2।।
सब कामनाओं को परिपूर्ण करने वाले भगवान् श्री पार्श्वनाथ का यशरूपी हंस अपनी कलध्वनि से पाताल को शब्दायित करता हुआ, अपनी धवलिमा से धरा को धवल बनाता हुआ, अपने विस्तार से आकाश को पूरित करता हुआ, अपनी गति से दिग्मंडल को लांघता हुआ, अपने आश्चर्यजनक कार्यों से सुर, असुर और नरसमूह को विस्मापित करता हुआ, संपूर्ण विश्व को सुख देता हुआ, लहरों के आघात से उठने वाले फेन (झाग) के बहाने समुद्र के जल को प्रकंपित करता हुआ चिरकाल तक शोभित होता रहे।
।।३।।
जो पुण्य-प्राप्ति के प्रधानस्थल, अंधकार (अज्ञान) को मिटाने के लिए सूर्य, कामरूपी हाथी के कुम्भस्थल के लिए अंकुश, मोक्ष में आरोहण के लिए सोपानपंक्ति, सुरेन्द्र के समान समृद्धिशाली, ज्योतिर्मय, प्रकाश के लिए 'रणि', दान में देवमणि (चिन्तामणि) के समान, उत्तम जनश्रेणि द्वारा वन्दनीय, पूजनीय, करुणास्रोत, सबको आनन्द देने के लिए अमृत तरंग हैं, ऐसे चिन्तामणि श्रीपार्श्व हमारे भवभंजक हों।
।।4।।
हे चिन्तामणि श्रीपार्श्व! मैंने तुम्हें समस्त प्राणियों के लिए संजीवनी के रूप में देखा है। हे तात! इसलिए इन्द्र से लेकर चक्रवर्ती की समस्त संपदाएं तुम्हारे में निहित हैं। तुम्हारे अनुग्रह से मुक्ति मेरे हाथों में क्रीड़ा कर रही है। मेरे विविध प्रकार के मनोरथ सिद्ध हुए हैं और मेरे सभी दुर्भाग्य, पाप, दुर्दिन, भय और कष्ट नष्ट हो गये हैं।
।।5।।
जिनका परिपूर्ण प्रतापरूपी सूर्य, जो जगत् में शीघ्र प्रसरणशील प्रचंड किरणों से युक्त है, वह कलिकाल की लीला का दलन करने वाला तथा मोहान्धता का विध्वंसक है। जिनके नित्य प्रकाशमान चरण संपूर्ण कमला-समृद्धि के क्रीड़ागृह के समान शोभित हैं वे समस्त प्राणियों के हितकर चिन्तामणि श्रीपार्श्वजिन मेरी रक्षा करें।
।।6।।
जिस प्रकार बालसूर्य भी विश्वव्यापी अंधकार को नष्ट कर देता है, कल्पवृक्ष का अंकुर दरिद्रता को मिटा देता है, सिंहशिशु गजयूथ का संहरण कर देता है, अग्निकण काष्ठराशि को जला देता है तथा अमृत का कण भी रोगसमूह को दूर कर देता है, वैसे ही हे विभो ! आपका व्यक्त स्वरूपदर्शन भी त्रिजगत् के प्राणियों के कष्टों का हरण करने में समर्थ है।
।।7।।
श्रीचिन्तामणि पार्श्वनाथ का यह मंत्र 'ओंकार' तथा 'हींकार' के सार से युक्त, 'श्रींकार' से संपन्न, 'अहं' पद से वेष्टित और 'नमिऊणपास' के पद से निबद्ध हैं। यह तीनों लोकों को वश में करने वाला, दो प्रकार के विषों - जंगम और स्थावर का नाश करने वाला तथा उनके प्रभाव को हरने वाला कल्याणकारी तथा प्रभावशाली मंत्र है। व', 'स', 'ह' - इन अक्षरों से अंकित तथा 'जिनफुलिंग' पद वाला यह महामंत्र (ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह नमिऊण पास विहसर वसह जिण फुलिंग) प्राणियों को आनन्द देने वाला तथा उल्लासमय है।
।।8।।
जो 'हींकार' और 'श्रींकार' से श्रेष्ठ हैं तथा जिसके आगे 'नमः' अक्षरपद जुड़ा हुआ है, ऐसे ऋद्धियुक्त महामंत्र (ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह नमिऊण पास विसहर वसह जिणफुलिंग ह्रीं श्रीं नमः) का जो योगीजन 'चिन्तामणि पार्वश्नाथ' को हृदयकमल में, फिर मस्तक पर, दायीं-बायर्यो भुजा पर, नाभि तथा दोनों हाथों पर अष्टदल कमल रूप में स्थापित करके ध्यान करते हैं, वे दो-तीन भव में ही मोक्षपद को प्राप्त हो जाते हैं।
।।9।।
चिन्तामणि पार्श्वनाथ के प्रणाम के प्रभाव से भक्तिनिष्ठ प्राणियों को न रोग होते हैं और न शोक, न कलह होते हैं और न शत्रु तथा घातक रोगों का आक्रमण, न उनको आधि (मानसिक पीड़ा) होती है और न ही असमाधि (अशान्ति), न भय होता न सताता है, न संकट और न निकृष्ट दरिद्रता, न उनको शाकनियों (डाकनियों) का भय सताता है और न अशुभ ग्रहों का, न उनको सिंह और हाथी-समूह का भय होता है और न सर्प या बाघ तथा वेताल का समूह भयभीत करता है।
।।10।।
जो व्यक्ति श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ की निरतर स्तवना करता है, उनका ध्यान करता है, उसके गृह-आंगन में कल्पवृक्ष, कामधेनु, कामकुंभ और चिन्तामणि का आगमन होता है। देव-दानव और मनुष्य सभी विनयपूर्वक उसके हित का चिन्तन करते हैं। सम्पूर्ण विश्व में रहने वाले गुणिजनों की लक्ष्मी स्वेच्छा से उसके अधीन हो जाती है।
।।11।।
जिनके परिपार्श्व में पार्श्व नामक यक्ष रहता है, जिन्होंने समस्त पापसमूह का नाश किया है तथा प्राणीसमूह को प्रीणित किया है। जो तीनों लोकों के प्राणियों की मनोकामनाओं को पूरा करने में चिन्तामणि रत्न के समान हैं, ऐसे तीर्थंकर श्रीपार्श्वनाथ शिवपद-रूपी वृक्ष का बीज-बोधिबीज मुझे प्रदान करें।
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