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Автор: MANISHA SRIVASTAVA
Загружено: 2023-08-25
Просмотров: 36242
लोरी- आरे आवऽ चंदा मामा पारे आवऽ………
इस गीत में फुसला-बहला के बच्चे को खाना खिलाने की तरकीब है । संसार का कोई बच्चा शायद ऐसा नहीं होगा जिसने बड़ी सिधाई से मां के हाथ से खाना खा लिया होगा। जो बच्चा खाना खाने में नखरे ना करे, वो बच्चा ही कैसा। शायद इसीलिए हमारे लोकगीतों और हमारी संस्कृति में इस तरह के गाने आए हैं और पीढि़यों से गाए जाते रहे हैं । भगवान जाने ये किसके दिमाग़ की उपज थे । झुर्रियों के पीछे छिपे किसी उम्रदराज़ मनोवैज्ञानिक मस्तिष्क की। या ममत्व की तरंगों में लीन किसी मां प्यार की।
श्रीं कृष्ण जन्माष्टमी विशेष में यह लोरी गीत आप सभी को समर्पित करती हूँ। और उम्मीद करती कि मेरे स्वर में गायी गई यह पारम्परिक लोरी गीत हर माँ तक पहुँचेंगी।
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