99% हिन्दुओं को इनका उत्तर नही पता | हिन्दु धर्म के रहस्य | Hindu dharam ke rahasya | sanatan dharam
Автор: Rahasya Duniya Hindi
Загружено: 2023-01-27
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99% हिन्दुओं को इनका उत्तर नही पता | हिन्दु धर्म के रहस्य | Hindu dharam ke rahasya | sanatan dharam
धर्मग्रंथ नहीं पढ़ पाने या बच्चों को बचपन में धार्मिक शिक्षा नहीं दे पाने के कारण वे सनातन धर्म को अच्छे से नहीं समझ पाते हैं और जिंदगीभर वे कन्फ्यूजन में ही जीते हैं जिसके चलते उनके मन में बहुत सारे सवाल उत्पन्न होते हैं और हकीकत यह है कि उन सवालों के उत्तर भी उन्हें अलग-अलग लोगों से अलग अलग मिलते हैं, क्योंकि सभी लोग उनके जैसे ही हैं, और कुछ लोग तो मनमाने या मन से कुछ भी उत्तर दे देते हैं। लेकिन हमने यहां आपके मन में उत्पन्न हो रहे सभी सवालों में से 10 सबसे कामन सवालों को प्रमुख रूप से लेकर उसके उत्तर को शास्त्रों पढ़कर आपके सामने प्रस्तुत किया है । आप इनके बारे में अधिक से अधिक जानने का प्रयास करेंगे तो ज्ञानवर्धन होगा, क्योंकि यहां संक्षिप्त रूप में उत्तर दिए जा रहे हैं। और सनातन धर्म के बाकी लोगों को साथ भी इसे शेयर जरुर करना है । साथ ही चैनल पर न्यू आये हैं तो प्लीज चैनल को सब्सक्राइब करके साथ में घंटी वाला वेल आइकन जरुर दबा दें । ताकि न्यू विडियो का नॉटिफिकेशन आपको सबसे पहले मिल सके । तो चलिये दोस्तों , बिना टाइम को बेस्ट किये विडियो को स्टार्ट करते हैं।
पहला प्रश्न - मूर्ति पूजा या देव पूजा करना सही है या गलत ?
यह एक ऐसा सवाल है , जिसका उत्तर बहुत से बाबा लोग अपनी मर्जी से कुछ भी जबाव दे देते हैं । दोस्तों , सृष्टि की सबसे पुरानी पुस्तक वेद में , एक निराकार ईश्वर की उपासना का ही विधान है। चारों वेदों के लगभग 20,589 मंत्रों में कोई ऐसा मंत्र नहीं है, जो मूर्ति पूजा का पक्ष रखता है ।
न तस्य प्रतिमाs अस्ति यस्य नाम महद्यस:। - (यजुर्वेद अध्याय 32, मंत्र 3 )
अर्थात उस ईश्वर की कोई मूर्ति अर्थात प्रतिमा नहीं जिसका महान यश है।
अन्धन्तमः प्र विशन्ति येsसम्भूति मुपासते।
ततो भूयsइव ते तमो यs उसम्भूत्या - रताः।। - (यजुर्वेद अध्याय 40 मंत्र 9 )
अर्थ : जो लोग ईश्वर के स्थान पर जड़ प्रकृति या उससे बनी मूर्तियों की पूजा उपासना करते हैं, वे लोग घोर अंधकार को प्राप्त होते हैं। हालांकि उपरोक्त बातें ईश्वर संबंधी हैं, देव संबंधी नहीं । प्राचीनकाल में कलयुग के प्रारंभ में देवी और देवताओं के विग्रह रूप की पूजा होती थी। फिर श्रमण धर्म के प्रभाव के चलते 2,000 वर्ष पूर्व 33 देवता और देवियों सहित श्री राम जी एवं श्री कृष्ण जी आदि की मूर्तियां बनाकर पूजने का प्रचलन चला । मूर्तिपूजा के समर्थक कहते हैं कि ईश्वर तक पहुंचने में मूर्तिपूजा रास्ते को सरल बनाती है। मन की एकाग्रता और चित्त को स्थिर करने में मूर्तिपूजा से सहायता मिलती है। मूर्ति को आराध्य मानकर उसकी उपासना करने और फूल आदि अर्पित करने से मन में विश्वास और खुशी का अहसास होता है। इस विश्वास और खुशी के कारण ही मनोकामना की पूर्ति होती है। विश्वास और श्रद्धा ही जीवन में सफलता का आधार है। लेकिन प्राचीन मंदिर , ध्यान या प्रार्थना के लिए होते थे। उन मंदिरों के स्तंभों या दीवारों पर ही मूर्तियां आवेष्टित की जाती थीं। मंदिरों में पूजा-पाठ नहीं होता था। यदि आप खजुराहो, कोणार्क या दक्षिण के प्राचीन मंदिरों की रचना देखेंगे तो जान जाएंगे कि ये मंदिर किस तरह के होते हैं। ध्यान या प्रार्थना करने वाली पूरी जमात जब खत्म हो गई है तो इन जैसे मंदिरों पर पूजा-पाठ का प्रचलन बढ़ा। पूजा-पाठ के प्रचलन से मध्यकाल के अंत में मनमाने मंदिर बने । मनमाने मंदिर से मनमानी पूजा-आरती आदि कर्मकांडों का जन्म हुआ, जो वेदसम्मत नहीं माने जा सकते । वैसे तो पूरा विश्व ही मूर्तिपूजक है। पंचभूतों से निर्मित किसी आकार पर श्रद्धा स्थिर करना मूर्तिपूजा है। मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारा, पुस्तक, आकाश इत्यादि सभी मूर्तिपूजा के अंतर्गत हैं। कौन मूर्तिपूजक नहीं है? निर्विवाद सत्य यह है कि भारत में सबसे अधिक मूर्तियां हैं, मंदिर हैं किंतु भारत मूर्तिपूजक नहीं है। ये मंदिर व मूर्तियां आध्यात्मिक देश भारत में अध्यात्म की शिशु कक्षाएं हैं।
दूसरा प्रश्न - धर्मग्रंथ वेद है या पुराण? वेदों की मानें या पुराण की?
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