Manik Ashtakam - in Sanskrit | माणिकाष्टकं |
Автор: Coral Sound
Загружено: 2025-12-10
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Manik Ashtakam from Sanskrit Granth Manik Prabhakar - संस्कृत प्रभुचरित्रग्रंथ 'माणिकप्रभाकर' ह्यातील माणिकाष्टकं
॥अथश्रीमन्माणिकाष्टकं॥
वंदे श्रीप्रभु सद्गुरूं गुणनिधीं
सद्भक्त कल्पद्रुमं।
मंदानांम शरणं शरण्यम मलं
नाथंम त्व नाथा श्रयं ॥
यत सत्ता कतया तू स्थावरभवो
देहः सुचेष्टांन्वीतः।
सो यंतो विद धातू वांछित फलं
माणिक कल्पद्रुमः॥१॥
यो भक्तकार्य द्रुमराट्गुरू सर्वस्थापी ।
राजाधिराज गुरूराज प्रभुः परोऽजः॥
आनंद अद्वैत निरंजनस्तु ।
माणिक सद्गुरू जयत्यथ सार्व भौमः ॥२॥
श्री निर्विकार विमलप्रभु पूर्णपूर्ण ।
निर्दोषनित्य निजमानस हंसवर्य ॥
स्फूर्णाख्य भाव गुणत स्तनु पाशबंध।
हे माणिकेती दयनीय दयां कुरूष्व ॥१॥
यद्वास नासृति विकर्मज जीवजालं।
देहाभिमान गुरू भार भराढ्य भालं ॥
कामा दिषट्क मणियुक्त घृतार्तिमालं।
हे माणिकेती दयनीय दयां कुरूष्व ॥२॥
लोके षणाख्य निगडेन द्विपाद बध्दं।
वित्ते षणाख्य निगडेन द्विहस्त बध्दं ॥
दारे षणाख्य निगडेन आकंठ मग्नं।
हे माणिकेती दयनीय दयां कुरूष्व ॥३॥
प्रारब्ध कर्म, बलवत्तर कर्षणेन ।
यन्मात्रृ कुक्षि भव तापनि पीडितंच॥
आ तीक्ष्ण यद्रसज, जंतुतुदंम विनीतं।
हे माणिकेती दयनीय दयां कुरूष्व ॥४॥
एवं प्रतिजननी गर्भज जाल बंधं ।
विण्मूत्र नरक कुहरे अति पच्य मानं ॥
यज्जाठरा नलबल प्रबलेन तप्तं।
हे माणिकेती दयनीय दयां कुरूष्व ५॥
प्रासूत वायु बलकर्षण यंत्र
दुःखाद्वी स्मृत्य सोहममलं सततं च कोहं॥
भ्रांत्या तमिस्त्र पर तंत्रज दुःखबालं।
हे माणिकेती दयनीय दयां कुरूष्व ॥६॥
आबाल्य यौवन वयस्य पिस्त्री प्र रक्तं।
कूपे पतंतमथ शैथिल देह दार ढ्यंम॥
सर्वै रूपेक्षिततनुं प्रिय माण मुक्तं।
हे माणिकेती दयनीय दयां कुरूष्व ॥७॥
इत्थंम चतुरशीति, योनिगणान्भ्रमंतं।
कोहमिति स्वगत ज्ञान वलेन हीनं।
दीनोध्दरा वनत भृव्द्र तराट्स्वदीनं।
हे माणिकेती दयनीय दयां कुरूष्व ८॥
इति स्तवेन संतुष्टः शिष्टंम प्रत्यक्षम ब्रवीत् ।
कलौतु मम नामैव नामैव तव जीवनम् ॥९॥
यः पठेत् प्रात रूत्थाय इदंम सर्वेप्सित प्रदम्।
स माणिकं प्रपज्ञेत मनसा वचसा द्रृषा ॥१०॥
॥इती श्री मन्माणिकाष्टकं संपुर्णं॥
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