वासना तुम्हें खा रही है और तुम मुस्कुरा रहे हो! अष्टावक्र गीता।
Автор: Zindagi Ka Gyaan
Загружено: 2025-10-30
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अष्टावक्र गीता में कहा गया है — जब तक मन वासना से भरा है, तब तक आत्मा का दर्शन असंभव है।
वासना वह जहर है जो धीरे-धीरे तुम्हें खा रहा है, और तुम उसे सुख समझकर मुस्कुरा रही हो।
जनक और अष्टावक्र का यह संवाद हमें भीतर झाँकने के लिए प्रेरित करता है —
क्या हम अपने ही बंधनों के गुलाम हैं?
या अब समय आ गया है कि भीतर के मौन को पहचानें और मुक्त हों?
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