आतंडियो में सूजन और वायु रोग । कारण और उपाय । आतंडिया हीं दूसरा मस्तिष्क कहलाती है ।
Автор: Yogi Anoop “Diagnosis & Cure”
Загружено: 2018-08-17
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आतंडियो में सूजन और वायु रोग
अंतंडियों का कोई भी रोग मस्तिष्क से और मस्तिष्क का कोई भी रोग आतंडियों से हो कर गुज़रता है । ये दोनों एक दूसरे के पूरक हैं ।
इस शरीर में दो मस्तिष्क है एक तो सिर में और दूसरा शरीर के बिलकुल निचले हिस्से अर्थात आतंडियों में । अर्थात आतंडिया ही दूसरा मस्तिष्क कहलाती है । उसमें किसी भी प्रकार की समस्या इस बात का संकेत देती है कि आपके मस्तिष्क में कुछ घट रहा है ।
सामान्य व्यक्ति इस बात का अंदाज़ा नहीं लगा पाता कि उसकी आँतों में सूजन की समस्या का कारण उसका मस्तिष्क है अथवा उसकी intestine या कुछ और । उसे लगता है उसकी आँतों के कारण मस्तिष्क में समस्या है ।
आँतों में सूजन के कारण उसका डिप्रेशन है, पर अगर बहुत गहराई से देखा जाय तो इन्फ़ेक्शस डिज़ीज़ेज़ के अलावा आँतों की समस्या का मूल कारण प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से
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योगी अनूप एक ऐसे आध्यात्मिक गुरु हैं जिन्होंने अपने 38 वर्षों की आध्यात्मिक साधना में आत्म ज्ञान हेतु हठ योग, राजयोग और ज्ञान योग का पूर्ण सहयोग लिया । इन सभी योग के अंगों के माध्यम से समाधि के स्तर को प्राप्त करके आत्म ज्ञान प्राप्त किया । यहाँ तक कि इन्होंने उन सभी यौगिक कलाओं को जिसमें योग , प्राणायाम , ध्यान , प्रत्याहार जैसे माध्यमों से मन मस्तिष्क और देह को स्वस्थ करने में भी सफलता प्राप्त किया । इन्होंने हठ योग, राज योग एवं ज्ञान योग को भी एक प्रकार से चिकित्सीय रंग दिया । आसान और प्राणायाम ही नहीं, बल्कि यम-नियम, प्रत्याहार और धारणा के माध्यम से मन मस्तिष्क और देह को ठीक करने में सफलता पायी ।यहाँ तक कि ज्ञान योग का चिकित्सीय ढंग से अभ्यास को जन्म दे कर शरीर के तंत्रिका तंत्र को ठीक करने का प्रयास किया । योगी अनूप एक ऐसे योगी हैं जिन्होंने ज्ञानेंद्रियों के अभ्यास से मस्तिष्क ही नहीं बल्कि शरीर के कई रोगों को ठीक करने में सफलता पायी है । उनके अनुसार ज्ञानेन्द्रियाँ ही देह की कर्मेन्द्रियों में रोग पैदा करती हैं । यदि ज्ञानेंद्रियों के तनाव को पूर्ण रूप से नियंत्रित और शांत कर दिया जाये तो कर्मेन्द्रियाँ स्वस्थ हो जाती हैं । यहाँ तक कि सभी अंगों का स्वास्थ्य ज्ञानेंद्रियों से होते हुए कर्मेन्द्रियों पर और कर्मेन्द्रियों से होते हुए शरीर के अंगों पर आकर गिरता है ।
योगी अनूप के अनुसार रोगों के जन्म का प्रारंभ की यह कड़ी है जो निम्नलिखित है -मन -पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ - पाँच कर्मेन्द्रियाँ - इसके बाद शरीर के अंगों पर दुष्प्रभाव ।
इन्होंने मन और इंद्रियों पर इतने सूक्ष्म अध्ययन करके मन और शरीर की बीमारियों को ठीक करने का प्रयास किया । इनका कहना है कि व्यक्ति जब तब आत्मोत्थान नहीं करता तब तक वह स्वयं को ठीक नहीं कर सकता है । इसीलिए योगी अनूप के अनुसार समस्त ऋषियों का मूल उद्देश्य आत्म ज्ञान तक के सफ़र में देह और मस्तिष्क को भी ठीक करना था ।
इन्होंने अपने आत्मज्ञान से मन, मस्तिष्क और देह के कई ऐसे रोगों को ठीक किया जिससे इनका स्वयं का ही विकास नहीं बल्कि संपूर्ण मानव समाज का विकास हुआ ।
योगी अनूप ने साथ साथ योग, प्राणायाम और ध्यान में कई कलाओं को रोगियों के प्रकृति के आधार पर विकसित किया और उसका परिणाम यहाँ तक आधुनिक चिकित्सा विज्ञान से भी शीघ्र हुआ । उन्होंने अब तक लगभग 30 हज़ार शिष्यों के साथ प्रत्यक्ष रूप से संपर्क बनाकर उन्हें ठीक करने का प्रयास किया । योगी अनूप बचपन से ही क्रिया योगी रहे हैं और उन्होंने क्रिया योग के माध्यम में भी कई ऐसे कलाओं को जन्म दिया जिससे आत्म संतोष व आत्म ज्ञान ही नहीं बल्कि शरीर और मस्तिष्क के रोगों को ठीक किया जा सकता है ।
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