Byaai Ji ko geet | mara byaan ji | gali geet | ब्यांण जी | gali | nakhrali byan | byaai ji ki gali
Автор: Jangid Lok Geet
Загружено: 2025-10-29
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छम्मक छुर्यो
हेर ब्यांण छम्मक छुर्यो खागी रे
ऊपर खागी लाल टमेटर ठंड बैठगी रे
ब्यांण छम्मक छुर्यो खागी रे
ऊपर खागी लाल टमेटर ठंड बैठगी रे
हेर गजरा में बाट्यां बळगी रे
ब्याई ने आगी नींद ब्यांण ने हाळ्या लेग्या रे
गजरा में बाट्यां बळगी रे
ब्याई ने आगी नींद ब्यांण ने हाळ्या लेग्या रे
हेर मारी ब्यांण तू तो सुणज्ये ऐ
दो दन आजा पावणी थारे कड़्यां घड़ाद्यूं ऐ
मारी ब्यांण तू तो सुणज्ये ऐ
दो दन आजा पावणी थारे कड़्यां घड़ाद्यूं ऐ
हेर बड़का पान बड़ाबड़ बोले रे
कुण रंडवा की निजर लगी मारो माथो दुखे रे
बड़का पान बड़ाबड़ बोले रे
कुण रंडवा की निजर लगी मारो माथो दुखे रे
हेर भूर्या की बाबळ मत बैठो रे
आवेलो भभूळ्यो थाने ले'र उड़ेलो रे
भूर्या की बाबळ मत बैठो रे
आवेलो भभूळ्यो थाने ले'र उड़ेलो रे
हेर दुकड़्या में रंग घोळूं रे
फैर बुलाऊं पावणा मने प्यारा लागो रे
दुकड़्या में रंग घोळूं रे
फैर बुलाऊं पावणा मने प्यारा लागो रे
हेर ब्यांण जी के छोरो होग्यो रे
नाम खडाद्यूं मोल्यो ईको सुगळा सुणज्यो रे
ब्यांण जी के छोरो होग्यो रे
नाम खडाद्यूं मोल्यो ईको सुगळा सुणज्यो रे
हेर ओ तो भर्यो बादळो गाजे रे
नाथूजी वाली ने तीतर लेग्यो सगला जाणे रे
ओ तो भर्यो बादळो गाजे रे
नाथूजी वाली ने तीतर लेग्यो सगला जाणे रे
हेर ब्यांण छम्मक छुर्यो खागी रे
ऊपर खागी लाल टमेटर ठंड बैठगी रे
ब्यांण छम्मक छुर्यो खागी रे
ऊपर खागी लाल टमेटर ठंड बैठगी रे
यह राजस्थानी गीत ग्रामीण जीवन और पारंपरिक बोलचाल से भरपूर है, जिसमें हास्य, व्यंग्य और लोकजीवन की बहुत मीठी गाली परंपरा की झलक साफ दिखाई देती है। गीत में "ब्याण" (समधन या ननद-भाभी के संदर्भ में) को केंद्र में रखकर तंज और मज़ाकिया ढंग से बात कही गई है। गीत की पंक्तियों में टमाटर, गजरा, पान, बाबूल, बादल जैसे प्रतीक लोक संस्कृति और गांव की दिनचर्या को दर्शाते हैं। इसमें रिश्तों के बीच अपनापन और चुहलखानी के साथ-साथ सामाजिक जीवन की सहजता भी उभरती है। खास बात यह है कि गीत में हंसी-ठिठोली के बहाने रिश्तों की गहराई और संवाद झलकता है। "कुण रंडवा की निजर" जैसे वाक्य ग्रामीण मान्यताओं और अंधविश्वास की ओर इशारा करते हैं, वहीं "दुकड़्या में रंग घोळूं" जैसी पंक्तियाँ उत्सव और रंग-रंगीली परंपरा को दर्शाती हैं। कुल मिलाकर यह गीत राजस्थान की लोकबोली, ग्रामीण जीवन और हंसी-मजाक की परंपरा का जीवंत चित्रण है।
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