🌹गणेश जी को निराकार में प्राप्त करना है
Автор: Sahajyoga way of salvation
Загружено: 2023-05-16
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🙏🌹*परम पूज्य श्री माताजी की दिव्य वाणी*🌹🙏
परमात्मा की सृष्टि की रचनाकार की शुरुआत जिस टंकार से हुई उसी को हम ब्रह्मनाद तथा ओंकार कहते हैं, सबसे प्रथम परमात्मा ने इस सृष्टि में पवित्रता का संचार किया, सर्व वातावरण को पवित्र करके पहले उन्होंने पुनीत किया जो चैतन्य स्वरूप आज भी आप लोग उसे जान सकते हैं, उसे महसूस कर सकते हैं, उसकी प्रचीति आपको मिल सकती हैं, वही ओंकार आज चैतन्य स्वरूप आपको भी पवित्र कर रहा है।
मनुष्य को अपना चित्त स्वच्छ कर लेना चाहिए, चित्त अगर आपका परमात्मा में है तो शुद्ध है क्योंकि चैतन्य आप में बह रहा है, पर चित्त अगर आपका इधर-उधर है तो उसका कोई फायदा नहीं है, जब तक आपका चित्त शुद्ध नहीं होगा तब तक आप ज्ञान प्राप्त कर ही नहीं सकते हैं। अबोधिता ही सबसे अधिक मोहक और सुन्दर होती है, सारी सृष्टि का सौन्दर्य श्री गणेश जी की ही कार्यवाही है।
चित्त को जो है आपको हर समय देखते रहना चाहिए कि इसमें कौनसे विचार खड़े हो रहे हैं, एक योगीजन को अपना चित्त आत्मा की ओर रखना चाहिए, हम अपनी ही चीजों में उलझे रहते हैं, और हर समय ये सोचते हैं कि इसमें हमारा क्या लाभ है सहजयोग में, असल में पूरा ही लाभ है, क्योंकि जिस वक्त आप अपने सिंहासन पर बैठ गये हैं तो पूरा राज आपका ही है लेकिन आप सिंहासन पर न बैठते हुए हर दरवाजे जाके भीख मांगेंगे तो आप तो भिखारी ही हैं, आपको सिंहासन पर बिठाने का फायदा क्या है और सिंहासन पर बैठकर भी आप कहें कि माताजी आप हमें थोड़ा रूपया पैसा दे दो, तो इस चीज का क्या अर्थ है।
"गणेश की शक्ति अगर अपने अंदर जागृत करनी है तो सबसे प्रथम जानना चाहिए कि हमें निराकार की ओर चित्त देना चाहिए, चैतन्य की ओर चित्त देना चाहिए और चैतन्य जो हमारे अंदर से बह रहा है उसको देखना चाहिए।"
🌹गणेश जी को निराकार में प्राप्त करना है🌹
🙏भाग 1🌹 श्री गौरी और श्री गणेश पूजा*
🌹18 सितम्बर 1988🌹मुंबई🙏
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