Samaysaar kalash Vanchan
Автор: Dr.BHARAT BHUSHAN JAIN(GSSAWR)
Загружено: 2021-09-24
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मूल ग्रंथ – श्री समयसार जी शास्त्र।
ग्रंथ रचनाकार– श्री कुंदकुंद आचार्य जी।
रचनाकाल– लगभग-2,000 वर्ष पूर्व।
इनके उपरान्त लगभग 1,000 वर्ष पश्चात् यानि वर्तमान से लगभग 1,000 वर्ष पूर्व इस शास्त्र जी के आधार से श्री आत्मख्याति टीका जो कि 4,000 श्लोक प्रमाण है की रचना हुई, इसके साथ ही कलशों की भी रचना हुई। अथवा यों कहिये कि-2,000 वर्ष पूर्व जिस समयसार जी शास्त्र रूप मंदिरजी का निर्माण श्री कुंदकुंदाचार्य द्वारा हुआ उस मंदिरजी पर कलशारोहन श्री अमृतचंद्र आचार्य द्वारा लगभग 1,000 वर्ष बाद हुआ, 246 कलश रचना हुई, यहाँ तक मूल शास्त्र का भाव पूर्ण हुआ लेकिन फिर भी रचनाकार द्वारा कुछ और बतलाना शेष रहा अत: रचनाकार श्री अमृतचन्द्राचार्य जी ने स्वतंत्र रूप से रचना कर 247 से 278 कलश और रचे। यह सब कार्य सँस्कृत भाषा में हुआ।
कलश रचनाकार–आचार्य श्री अमृतचन्द्र जी
लेखन भाषा– सँस्कृत।
स्वर– भारत भूषण जैन, अलवर(राज०)
इसके कुल 12 अध्याय हैं।
प्रथम अध्याय– जीव अधिकार, कलश क्रमाँक-01 से 32 तक।
द्वितिय अधिकार–अजीव अधिकार, कलश क्रमाँक-33 से 45 तक।
तृतिय अधिकार–कर्ता-कर्म अधिकार, कलश क्रमाँक-46 से 99 तक।
चुतुर्थ अधिकार–पुण्य-पाप अधिकार, कलश क्रमाँक-100 से 112 तक।
पंचम अधिकार–आस्रव अधिकार, कलश क्रमाँक-113 से 124 तक।
षष्टम अधिकार–संवर अधिकार, कलश क्रमाँक-125 से 132 तक।
सप्तम अधिकार–निर्जरा अधिकार, कलश क्रमाँक-133 से 162 तक।
अष्टम अधिकार–बन्ध अधिकार, कलश क्रमाँक-163 से 179 तक।
नवम अधिकार–मोक्ष अधिकार, कलश क्रमाँक- 180 से 192 तक।
दशम अधिकार–सर्वविशुद्ध ज्ञान अधिकार, कलश क्रमाँक- 193 से 246 तक।
एकादश अधिकार–स्याद्वाद अधिकार, कलश क्रमाँक-247 से 263 तक।
द्वादश अधिकार–साध्य- साधक अधिकार, कलश क्रमाँक-264 से 278 तक।
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