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निर्भय

Автор: Baal Br. Pt. Sumat Prakash Ji

Загружено: 2025-08-05

Просмотров: 118811

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(सहज पाठ संग्रह)

निर्भय स्वभाव चिंतन

मैं सदा से रहा आत्मा, अब भी हूँ।
आत्मा ही रहूँगा, न बदलूँगा मैं ।। टेक ।।

कोई निन्दा करे या करे स्तुति, बाह्य वैभव बढ़े या सभी नष्ट हों।
इनसे वृद्धि न हानि तनिक भी मेरी, इसलिए लोकभय व्यर्थ ही है मेरा ।।
लोकभय से अहित निज का करता रहा, अब इसे तज चिदानन्द ध्याऊँगा मैं ।। 1।।

बुद्धि एकत्व की व्यक्त पर्याय में, इसलिए भव जगत में मैं धारण किये।
सुर न नारक न तिर्यञ्च मानुष हुआ, ये तो नष्ट हुई, मैं तो शाश्वत रहा।।
सोचना व्यर्थ पर लोक की भी मुझे, मूर्छा ये भी तजूँ सुख भोगूँगा मैं।। 2।।

आत्मा आधि-व्याधि-उपाधि रहित, रागमय वेदना भी अभी परिहरूँ।
जीव का मरण होता कभी भी नहीं, द्रव्यदृष्टि से भय मरण का भी तजूँ ।।
रोग होता रहे, मौत होती रहे, अब कभी भी न इन रूप होऊँगा मैं ।।3।।

निज प्रदेशत्व रूपी किलेबन्दी है, उसको रक्षित रखे निज का अस्तित्व है।
गुण अगुरुलघु सदा आत्मा में रहे, आत्म वैभव में ना हानि-वृद्धि कहीं ।।
इसलिए चिन्ता रक्षा तथा गुप्ति की, तज परमपद को अब शीघ्र पाऊँगा मैं ।। 4 ।।

परिणमन का समय क्रम भी निश्चित रहे, काल लब्धि से होते हैं परिणाम सब ।
आ गये ज्ञान में सर्व ज्ञाता के सब, मेरी चिन्ता से होता कभी कुछ नहीं ।।
अकस्मात् की चिन्ता से निर्मुक्त हो, ले समाधि निजात्मा को पाऊँगा मैं ।। 5 ।।

श्रद्धेय ब्र. रवीन्द्रजी ‘आत्मन्’
_____________________________________

Lyrics - Baal Br. Shree Ravindra Ji ‘Aatman’
Singer – Vandana Parakh, Rajnandgaon
Backing Vocal– Anamika Bardiya, Rajnandgaon
Studio - Vilas Digital Recording Studio, Rajnandgaon
Special thanks - ​⁠​⁠​⁠ ​⁠​⁠ Guru kahan art museum.

निर्भय

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