Kissa Gopichand Bharthari -2-Brahamanand Malik-1988
Автор: Satyaveer Kundu
Загружено: 2023-10-27
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हरियाणवी किस्सा-
गोपीचन्द-भरथरी-2
रचयिता- पं0 लखमीचन्द,
गायक-ब्रह्मानन्द मलिक व साथी
प्रस्तुति-सोनोटोन
प्रस्तुति वर्ष-1988
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1. कर दिया अमर शरीर तेरा तू परले पार फिरेगा बेटा,
धरती और आसमान रहेंगे इतने नहीं मरैगा बेटा।।
2. गोपीचन्द तै लाल कहण का कुछ ना सै हक तेरा,
नेग बदलग्या एक स्यात मैं गुरूभाई होग्या मेरा।।
3. पाटमदेह मेरी नार तै माता कहकै आज महल में अलग जगाउंगा।
4. राजछोड़ करा भगमा बाणा तनै तन मैं खाक रमाई अक ना,
सुपने आली बात देख मेरी बिल्कुल साची पाई अक ना।।
5. पाटमदेह परी रोवै ना दुख लिखा सै तेरी तकदीरा मैं,
गुरू जालन्धरनाथ मिले मैं रलग्या परम फकीरा मैं।।
6. चन्द्रावल तै माता कहकै भिक्षा लाणी होगी,
जोग सफल हो जब मेरे मुंह तै पूरी बाणी होगी।।
7. क्यूंकर बहाण लगूं तेरी तू क्यूंकर सै मा जाया बीर,
गोपीचन्द सै नाम मेरा और धारा नगर जन्म जगीर।।
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