chandrakant devtale | मैं अपने को साँप से लड़ते नेवले की तरहलड़ते हुए देखना चाहता हूँ | Poetry
Автор: AmarUjala Kavya
Загружено: 2025-11-06
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मैं अपने को लड़ते हुए देखना चाहता हूँ
नेक और कमज़ोर आदमी जिस तरह एक दिन
चाक़ू खुपस ही देता है फ़रेबी मालिक के सीने में
जैसे बेटा माँ से लड़ता है
और छिपकर ज़ार-ज़ार आँसू बहाता है
जैसे अपनी प्रियतम से लड़ते हैं
और फिर से लड़ते हैं प्रेम बनाने के लिए
मैं अपने को साँप से लड़ते नेवले की तरह
लड़ते हुए देखना चाहता हूँ
~ चंद्रकांत देवताले
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