सेवा ही पूजा |
Автор: Learn Advaita Vedanta
Загружено: 2025-12-07
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सेवा ही पूजा
हे विश्वनाथ…… हरि……, हे जगदीश……॥
सेवा ही पूजा, यही तेरा सच्चा ध्यान,
हर प्राणी में देखूँ तुझको, यही हो जीवन का मान॥
थका हुआ जो द्वार पे आए, उसे मुस्कुराकर बैठाऊँ,
तेरे नाम से जल पिलाकर, तेरी कृपा का रस पिलाऊँ।
किसी की आँख में आँसू हों, उन्हें अपने आँचल से पोंछूँ,
तेरी स्मृति से भर के दिल को, हर पीड़ा को हल्का करूँ॥
सेवा ही पूजा, यही तेरा सच्चा ध्यान,
हर प्राणी में देखूँ तुझको, यही हो जीवन का मान॥
तू ही तो है बिन बोले, उस बूढ़े की थरथराती चाल,
तू ही बच्चे की हँसी में, तू ही हर घायल की कराह।
तेरे दर्शन को मंदिर जाऊँ, पर बाहर भी तुझको जानूँ,
आरती की लौ से आगे, तेरी करुणा की ज्योति मानूँ॥
सेवा ही पूजा, यही तेरा सच्चा ध्यान,
हर प्राणी में देखूँ तुझको, यही हो जीवन का मान॥
तेरी कथा भी सुनूँ प्रीत से, तेरी सेवा भी चुपचाप करूँ,
नाम-जप और कर्म-पथ दोनों, तेरे चरणों में अर्पित करूँ।
ऐसी दृष्टि दे हे हरि, कोई भी अजनबी न रहे,
हर चेहरे में तू मुस्काए, हर दुख में तेरा हाथ दिखे॥
सेवा ही पूजा, यही तेरा सच्चा ध्यान,
हर प्राणी में देखूँ तुझको, यही हो जीवन का मान॥
सा रे ग प नि, नि प ग रे सा॥
सच्ची भक्ति केवल शब्दों की नहीं, सेवा की भी माँग करती है।
जो भूखे को भोजन, दुखी को सहारा देता है, वह तुझे ही पूजता है।
हर प्राणी में तेरा अंश है, यह भाव सेवा को पूजा बना देता है।
मंदिर की आरती और जीवन की करुणा दोनों मिलकर पूर्ण आराधना बनते हैं।
यह गीत सेवा को तेरे चरणों की आरती मानकर गाया गया है।
Note:
This devotional content was created with the support of AI tools under human guidance.
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