छठ के गीत: लोक आस्था से नारी मन तक | मानवीय भावनाओं, संस्कृति और सूर्योपासना की अमर गाथा
Автор: Lok Chetna
Загружено: 2025-10-25
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“दीयों की रौशनी मंद पड़ी नहीं थी कि कानों में उतर आईं आस्था की स्वर लहरियाँ — ये हैं छठ के वो गीत, जिनमें मिट्टी की खुशबू और नारी मन की संवेदना एक हो जाती है।” 🌅
दीपावली की जगमगाहट के बाद जब आसमान थोड़ा शांत होता है, तभी घर - घर में गूंजने लगते हैं छठ के अलौकिक गीत — सूर्योपासना, मातृत्व और मानवीय संवेदनाओं की अद्भुत अभिव्यक्ति।
इन गीतों में सिर्फ पूजा नहीं, बल्कि नारी मन की कोमलता, प्रकृति के प्रति कृतज्ञता, संतान के सुख की प्रार्थना, और सामाजिक समरसता का गहरा दर्शन छिपा है।
🎧 इस एपिसोड में अरविन्द प्रस्तुत कर रहे हैं —
छठ गीतों के मानवीय, सांस्कृतिक और दार्शनिक पक्षों का संवेदनशील विश्लेषण।
जानिए कैसे “रुनकी-झुनकी हम बेटी मांगिले” जैसे गीत नारी सशक्तीकरण, शिक्षा और नैतिकता का संदेश देते हैं।
कैसे “घटवा के आरी-आरी रोपब केरवा” गीत स्वच्छता और प्रकृति के संतुलन का संदेश बनते हैं।
और क्यों “केरवा जे फरले घउद में...” गीत स्त्री मन की करुणा का सर्वोत्तम प्रतीक हैं।
🌸 छठ के लोकगीत – सिर्फ श्रद्धा नहीं, यह जीवन दर्शन हैं।
👉 देखिए, सुनिए और महसूस कीजिए — लोक जीवन का वो पक्ष, जो हमें अपनी जड़ों से जोड़ता है।
🎤 Voice & Script: अरविन्द कुमार पांडेय
📺 Channel: लोक चेतना | Lok Chetna
🎶 Theme: लोक आस्था, नारी संवेदना, छठ गीतों की सांस्कृतिक गहराई
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