KETAN DIN AISE GAYE, “केतन दिन ऐसे गए " Kabir Das Bhajan, sant kabir das 2026
Автор: kabir Das Bhajan
Загружено: 2025-12-19
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✨ परिचय
संत कबीर दास जी की वाणी आत्मा को जागृत करने वाली है। उनका दोहा “केतन दिन ऐसे गए” जीवन के बीते हुए समय और उसके सार को समझने का संदेश देता है। कबीर जी कहते हैं कि जीवन के दिन ऐसे ही बीत जाते हैं, जैसे हवा के झोंके। यह दोहा हमें यह सिखाता है कि समय अमूल्य है और इसे व्यर्थ नहीं गंवाना चाहिए।
📜 मूल भावार्थ
केतन दिन ऐसे गए, जैसे पवन बहाय।
कबिरा अब पछताय क्या, जब समय हाथ न आय॥
👉 भावार्थ:
जीवन के दिन ऐसे ही बीत जाते हैं जैसे हवा बह जाती है। जब समय निकल जाता है, तब पछताने से कोई लाभ नहीं होता। इसलिए हर क्षण को सार्थक बनाना चाहिए।
🌿 आध्यात्मिक संदेश
समय का महत्व: हर क्षण अमूल्य है।
जीवन का सार: बीते हुए समय को वापस नहीं लाया जा सकता।
साधना और भक्ति: वर्तमान में ही ईश्वर का स्मरण करना चाहिए।
कबीर वाणी: हमें जागरूकता और विवेक का मार्ग दिखाती है।
📚 कबीर अमृतवाणी के अन्य दोहे (Selected & Explained)
साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप।
जाके हिरदै साँच है, ताके हिरदै आप॥
➡️ सत्य ही सबसे बड़ा तप है।
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय॥
➡️ सच्चा ज्ञान प्रेम में है।
कबीरा खड़ा बजार में, लिए लुकाठी हाथ।
जो घर फूँके आपना, चले हमारे साथ॥
➡️ अहंकार त्यागने वाला ही सच्चे मार्ग पर चलता है
📌 निष्कर्ष
“केतन दिन ऐसे गए” दोहा हमें यह सिखाता है कि समय अमूल्य है और इसे व्यर्थ नहीं गंवाना चाहिए। कबीर दास जी की वाणी आज भी हमें आत्मचिंतन, विवेक और सच्चे भक्ति मार्ग की ओर प्रेरित करती है
📌 निष्कर्ष
“केतन दिन ऐसे गए” दोहा हमें यह सिखाता है कि समय अमूल्य है और इसे व्यर्थ नहीं गंवाना चाहिए। कबीर दास जी की वाणी आज भी हमें आत्मचिंतन, विवेक और सच्चे भक्ति मार्ग की ओर प्रेरित करती है
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