मानस-प्रबोध | मनाचे श्लोक क्रमांक - २२ | निरुपणकार - श्री. विनीत जोशी
Автор: Shree Chaitanya Ram
Загружено: 2025-08-30
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मना सज्जना हीत माझें करावें।
रघुनायका दृढ चित्ती धरावें॥
महाराज तो स्वामि वायु सुताचा।
जना उद्धरी नाथ लोकत्रयाचा॥२२॥
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