“हर श्वास में तू, हर धड़कन में तू”|
Автор: Learn Advaita Vedanta
Загружено: 2025-12-03
Просмотров: 1545
“हर श्वास में तू, हर धड़कन में तू”
हरि… हरि…ओ हरी…
हर श्वास में तू, हर धड़कन में तू—
सभी में विराजे, पर लिप्त न हो तू।
कमल-पत्र जैसा पवित्र अलिप्त,
नील गगन-सा व्यापक तू॥
जो सभी हृदयों में समाया—
पर किसी में कम न किसी में ज्यादा।
अणु-अणु में तेरी ही छाया—
पर रहता जगत से निःस्पृहा, अनाया।
जैसे कमल-पत्र जल छूकर भी
जल का बंधन कभी न पाए,
वैसे ही तू जग में रहकर भी
जगत की लिप्सा से दूर ही जाए॥
हर श्वास में तू, हर धड़कन में तू—
सभी में विराजे, पर लिप्त न हो तू।
अनंत ब्रह्मांडों का रचयिता—
पर कर्म का बंधन तुझको छू न पाए।
अकर्ता होते हुए भी तू ही—
हर प्राण-धारा को चलाए।
तेरी आज्ञा से दिन चले,
तेरी मर्यादा से सागर रुके;
तेरी हवा से जीवन बहे—
तेरी शक्ति से जग उठे-झुके॥
हर श्वास में तू, हर धड़कन में तू—
सभी में विराजे, पर लिप्त न हो तू।
तेरा नाम जपे जो मन से,
उसकी हर इच्छा तू पूरी करे।
तेरी कथा का मधुर रस पाकर
हर बंधन का दुःख स्वयम ही मरे।
कान में तेरी लीला पड़ते ही
विकल्प सारे टूट जाएँ,
मन की परछाइयाँ मिट जाएँ—
आत्मानंद स्वयं खिल जाए॥
हर श्वास में तू, हर धड़कन में तू—
सभी में विराजे, पर लिप्त न हो तू।
किंतु जो तेरी महिमा न जाने,
जो विषयों में ही मन रचाए—
वे दुर्भाग्य के बोझ तले
ईश्वर-स्मरण को भूल जाएँ।
लोभ, अहंकार, दुख की धारा—
उन पर दिन-रात बहती जाए।
भक्ति की मीठी वर्षा उनके
सूखे मन में उतर न पाए॥
हर श्वास में तू, हर धड़कन में तू—
सभी में विराजे, पर लिप्त न हो तू।
हे प्रभु! जो तुझे बस याद कर ले,
उसकी काया-चेतन पावन हो।
जिसके हृदय में तू बस जाए—
उसका जीवन पूर्ण रवि-सम हो।
सब में तू है—ये जान लेने से
जीवन ही अनंत हो जाए।
जो जग से ऊपर तुझमें जी ले—
वह मुक्त भाव से जीवन गाए॥
हर श्वास में तू, हर धड़कन में तू—
मेरे हर पल का आधार तू।
जग में रहकर भी जग से परे—
हे प्रभो! मेरा सत्चिदानंद तू॥
हरि… हरि…
Note:
This devotional content was created with the support of AI tools under human guidance.
It is intended solely for spiritual and creative expression.
Copyrights © 2025 Learn Advaita Vedanta.
Доступные форматы для скачивания:
Скачать видео mp4
-
Информация по загрузке: